कहने को हम इक्कीसवीं सदी में हैं जहां ज्ञान और विज्ञान के जरिये चांद-तारों के बीच आसियां बसाने की सोच रहे हैं। ,,घर में बैठे देश-विदेश के हर पहलू से वाकिफ हो रहे हैं।,,लेकिन इसके बावजद हम अभी भी कितने पीछे हैं इसकी कल्पना करने की शायद जरूरत नहीं समझते,, इस देश में कभी मूर्तियों को दूध पिलाने के लिए होड़ लग जाती है तो कभी फल, सब्जियों और पेड़ पौधों में देव आकृति उभरने के कारण उसकी पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है,, हमें याद है कई साल पूर्व गांवों में बोगस चिटिठयां और पोस्टकार्ड भेजने का दौर चलता था। गांव में किसी व्यक्ति के घर पोस्टकार्ड आता था जिसमें संतोषी माता के बारे में कई तरह की किंवदंतियां लिखी होती थी। साथ ही यह लिखा होता था कि अमुक स्थान पर एक कन्या ने जन्म लिखा है जन्म लेते ही वह उठ बैठी। वह स्वंय को संतोषी माता का अवतार बता रही है। उसने कहा है कि जो संतोषी माता का व्रत और उदापन करेगा उसे मनोवांछित फल मिलेगा। पोस्टकार्ड के अंत में यह लिखा होता था कि जो भी व्यक्ति इस पत्र को पढे़गा उसे 11, 21, 51 या 101 पोस्टकार्ड पर यही संदेश लिखकर भेजने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया तो उसके परिवार में उसका जो सबसे प्रिय होगा वह मर जायेगा। गांवों में तब उतने पढ़े लिखे लोग नहीं होते थे उन्हें अपनी चिटिठयां पढ़वाने व लिखवाने के लिए साक्षरों की बेगार भी करनी पड़ती थी। ऐसी दशा में संतोषी माता का पोस्टकार्ड जिसके घर पहुंच जाता था उसकी क्या दशा होती होगी इसका सहज ही आंकलन किया जा सकता है।
बीस साल में काफी कुछ बदल गया। तख्ती से स्लेट और अब कम्प्यूटर तक की शिक्षा ग्रहण करने का दौर नर्सरी से ही चल रहा है इसके बावजूद आडम्बर, अफवाहों और अंध विश्वासों का दौर नहीं खत्म हो सका। यह हालात तब हैं जब सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों के जरिये समाज के निचले और गरीब तबके के भी लोगों को शिक्षित किया जा रहा है। ऐसा ही एक ताजा वाक्या बीत15 मार्च की रात का है जो इन दिनों गांव-गांव और शहर की गलियों में चर्चा का विषय बन गया है-..सुबह करीब आठ बजे का वक्त था जब मेरी मोबाइल की घंटी बजी। आरती ने फोन उठाया तो दूसरी लाइन पर पर उनकी माँ मुखातिब थीं। वे बोलीं एक खबर है जिसके बारे में बताना है। आरती यह बात सुनकर बहुत खुश हुई कि शायद कोई खुश खबरी मिलने वाली है। वे बहुत आतुर हुईं तो माँ जी ने बताया कि लालगंज के पास एक गाँव में एक कन्या ने जन्म लिया है उसने पैदा होते ही कहा कि सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए पांव में महावर और मांग में मोटिया सिंदूर लगाएं। यह बताने के बाद उस कन्या की मौत हो गई। केवल सीमा ही अकेली सुहागिन नहीं हैं जिनके पास इस बाबत फोन आया। यह संदेश पहले दर्जनों फिर सैंकडों और फिर अनगिनत महिलाओं तक पहुंचा। जैसे-जैसे यह संदेह पहुंचता गया वैसे-वैसे अंध विश्वास की डोर मजबूत होती गई। इस ताजे वाक्ये ने हमारे में समाज में व्याप्त अंध विश्वास की कलई एक बार फिर खोल दी है।अफवाह फैलाने का तरीका भी अब हाईटेक होता जा रहा है।