Saturday, July 27, 2013

हम तो गरीब लोग हैं,

वह साइकिल पर अपने एक तरफ गैस का छोटा सिलेंडर बाँध कर जा रहा था. उसके आगे भी हैंडल पर जो समान टंगा था उससे साफ लग रहा था की वह कोई गैस आदि को साफ करने और उनकी मरम्मत करने का काम करता होगा. एक जगह ट्रैफिक जाम था और संभाल कर चलते रहने के बाद भी उसके सिलेंडर का हिस्सा जाम में फंसी कार से टकरा गया. उसे पछतावा हुआ पर यह उसके चेहरे पर आयी शिकन से लग रहा था.
कार के अन्दर से चूड़ीदार पायजामा और सफ़ेद कुरता पहने एक आदमी निकला उसने अपनी कार देखी और उसपर लगे खरोंच के निशान दिखे तो उसे गुस्सा आगया. और उसने साइकिल वाले को पास बुलाया, उसके पास आते ही उसने उसकी गाल पर जोर से थप्पड़ जड़ दिया. उस गरीब की आंखों में पानी भर आया, और अपने गाल पर हाथ रखता हुआ वहाँ से चला गया.
एक सज्जन जो इस घटनाक्रम को देख रहे थे उस साइकिल वाले के पास गए और बोले-’चलो, पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ. उसको अदालत में घसीट कर दिखाएँगे कि किस तरह थप्पड़ मारा जाता है.’
उस साइकिल वाले ने लगभग रोते हुए कहा-.बाबूजी, जाने दीजिये. हम गरीबों की इज्जत क्या है? यह लोग तो ऐसे ही हैं. इन जैसे लोगों के बाप अंधे होकर अंधी कमाई कर रहे हैं और इनसे में गरीब कहाँ तक मुकाबला करूंगा?”
वह चला गया और वह सज्जन उसे जाते देखते रहे . एक दूसरा साइकिल वाला सज्जन भी उनके पास आया और बोला-’वह सही कह रहा था. इनका कोई क्या कर सकता है.
उन सज्जन ने कहा-’भाई, हकीकत तो यह है कि इस तरह तो गरीब का सड़क पर चलना मुशिकल हो जायेगा. अगर यह कार वाला मारकर उसे उडा जाता तो कुछ नहीं और उसकी साइकिल से थोडी खरोंच लग गई तो उसने उसे थप्पड़ मारा. इस तरह तो गरीब जब तक लड़ेगा नहीं तो जिंदा नही रह पाएगा.’
वह कार वाला दूर खडा था. दूसरा साइकिल वाला बोला-’साहब वह गरीब आदमी कहाँ भटकता? आप मदद करते तो आपको भी परेशानी होती. हम तो गरीब लोग हैं, मैं साइकिल पर फल बेचता हूँ पर दिन भर अपमान को झेलता रहता हूँ. हम लोगों को आदत है, यह सब देखने की.’
उन सज्जन ने आसमान की तरफ देखा और गर्दन हिलाते हुए लंबी साँसे लेते हुए कहा -’लोग समझते नहीं है को जो गरीब काम कर रहे हैं, वह अमीरों पर अहसान करते हैं क्योंकि वह कोई अपराध नहीं करते. शायद यही कारण है कि आजकल कोई छोटा काम करने की बजाय अपराध करना पसंद करते हैं. जो इस हालत में भी छोटा काम कर रहे हैं उन्हें तो सलाम करना चाहिऐ न कि इस तरह अपमानित करना चाहिए. जब तक अमीर लोग गरीब का सम्मान नहीं करेंगे तब तक इस देश में अपराध कम नहीं हो सकता.
वह सज्जन वहाँ से निराशा और हताशा में अपनी गर्दन हिलाते हुए चले गए, पीछे से दूसरा साइकिल वाला उनको जाते हुए पीछे से खडे होकर देखता रहा.

Friday, July 26, 2013

बिल्लू दादा

RAJU  नया -नया DILLI  आया था गाँव से , पुलिया के नीचे आदमियों की भीड़ ज्यादा दिखी तो वहीं बगल मैं लगा लिया मूंगफली का ठेला, अभी बोहनी भी नही हुयी थी किएक आदमी आया और ठेले मैं से मुठी भर कर मूंगफली उठाई और चलता बना, रामू ने उसे आवाज देकर पैसे के लिए कहा तो भद्दी सी गाली देते हुए RAJU  को मरने के लिए झपटा, RAJU भी कोई कम नही था, अभी-अभी बीसवें साल मैं कदम रखा ही था, सरीर भी माता-पिता के लाड और झुमरी गायके दूध कि बदोलत आसपास के गाँव मैं किसी का नही था ऐसा पाया था, ऐसे मैं वो कहाँ दबने वाला था, एक ही दावमैं उस आदमी को जमीन दिखा दी, और फ़िर जो लगा दे दनादन जो उसे तबला बना दिया, तभी भीड़ मैं से कोई चिल्लाया
अरे ये तो बिल्लू दादा है , अब ये ठेले वाला तो गया कम से, दादा की इजाजत के बगेर तो इस इलाके मैं पत्ता भी नही हिलता,
RAJU  के हाथ जहाँ के तहां रुक गए, सीन बदल गया था, अब हाथ दादा के चल रहे थे और RAJU  गिडगिडा रहा था, माफ़ी मांग रहा था,

Wednesday, July 24, 2013

सीट दो की है तो क्या हुआ, थोड़ा सा खिसक कर किसी को बेठा लेंगे तो क्या चला जाएगा ? इंसानियत भी कोई चीज होती है , बस मैं मेरी बगल मैं खड़े सज्जन सीटों पैर बेठे लोगों को कोसते हुए बडबडा रहे थे, अगले स्टोपेज पर एक सवारी उतारी तो उन महाशय को भी सीट मिल गयी, वह भी मेरी तरह ही दुबले पतले से थे, सीट मैं थोडी जगह दिखाई दे रही थी, इससे मुझे भी थोडी उम्मीद जगी, मैंने उनसे कहा भाईसाहब, थोड़ा खिसक जाओ तो मैं भी अटक जाऊं,इतना सुनते ही वे भड़क गए,बोले, सेट दो की है और हम दो ही बैठे हैं, कहाँ जगह दिख रही है तुम्हें ? अपनी सहूलियत देखते हैं सब, दूसरे की परेशानी नही समझाते, अब मुझे समझ मैं आ गया था कि दो की सीट पर दो ही क्यों बेठे हैं

यूँ भी होता है

गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बेठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर कईं आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,तभी एक युवती बस मैं चडी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,
बेठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा,
इस आवाज पर युवती ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,
जी नही,
युवक उसी मुस्कान के साथ बोला, इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बेठा दिया,अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह युवती को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,
रामू नया -नया जयपुर आया था गाँव से , पुलिया के नीचे आदमियों की भीड़ ज्यादा दिखी तो वहीं बगल मैं लगा लिया मूंगफली का ठेला, अभी बोहनी भी नही हुयी थी किएक आदमी आया और ठेले मैं से मुठी भर कर मूंगफली उठाई और चलता बना, रामू ने उसे आवाज देकर पैसे के लिए कहा तो भद्दी सी गाली देते हुए रामू को मरने के लिए झपटा, रामू भी कोई कम नही था, अभी-अभी बीसवें साल मैं कदम रखा ही था, सरीर भी माता-पिता के लाड और झुमरी गायके दूध कि बदोलत आसपास के गाँव मैं किसी का नही था ऐसा पाया था, ऐसे मैं वो कहाँ दबने वाला था, एक ही दावमैं उस आदमी को जमीन दिखा दी, और फ़िर जो लगा दे दनादन जो उसे तबला बना दिया, तभी भीड़ मैं से कोई चिल्लाया
अरे ये तो बिल्लू दादा है , अब ये ठेले वाला तो गया कम से, दादा की इजाजत के बगेर तो इस इलाके मैं पत्ता भी नही हिलता,
रामू के हाथ जहाँ के तहां रुक गए, सीन बदल गया था, अब हाथ दादा के चल रहे थे और रामू गिडगिडा रहा था, माफ़ी मांग रहा था,