Monday, August 5, 2013

भिखारी

एक बार एक आदमी टैक्सी का इंतेजार कर रहा था
एक भिखारी उसके पास आया और पैसे माँगने लगा
उसने भिखारी को नजरंदाज किया
लेकिन भिखारी पीछा छोड़ने वाला नहीं था
वह बार बार पैसे माँग रहा था
आदमी के समझ में आ गया की यहऐसे नहीं मानेगा
अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया...
उसने भिखारी से कहा :
"मेरे पास पैसे नहीं है, यदितुम मुझे बताओ कि तुम उन
पैसो का क्या करोगे तो मैं मदद कर सकताहूँ"
भिखारी : "मैं एक कप चाय पियुंगा"
आदमी : "मै तुम्हे चाय के बदले सिगरेट दे सकता हूँ"
कह कर उसने जेब से सिगरेट निकाला और भाई की और बढ़ाया
भिखारी : "मैं सिगरेट नहीं पीता यह सेहत के लिये नुक़सानदेह है"
आदमी मुसकुराया और दुसरी जेब से शराब की बोतल निकाल कर
भिखारी से कहा : "ये बोतल ले लो और मजे करो, बहुत
मजा आयेगा"
भिखारी : "शराब दिमाग की सोचको विकृत करता है और लीवर
को नुक़सान पहुँचाता है"
आदमी दुबारा मुसकुराया और भिखारी से बोला :"मैं
कैसीनो जा रहा हूँ, वहाँ कुछ जुगाड़ लगा कर जुआ खेलतेहैं,
जो जीतेंगे वो तुम रख लेना, और मुझे छोड़ देना"
भिखारी ने विनम्रतापुर्वक कहा : "जुआ खेलना बुरी बात है, मैं
जुआ नहीं खेल सकता"
परेशान होकर आदमी ने कहा :"क्या तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगे"
भिखारी सोच में पड़ गया, इसके साथ जा कर हो सकता है कुछ
मिले और हो सकता है कुछ ना भी मिले
और शंकित होकर पुछा : "आप मुझे घर क्यों ले जाना चाहते हैं"
आदमी ने जवाब दिया :
"मेरी बीवी हमेशा एक ऐसे आदमी को देखना चाहती है जिसमे कोई
बुरी आदत ना हो, मैं उसे दिखाना चाहता हूँ की बिना बुरी आदत के
आदमी का क्या हाल होता है"..

भोजन करने सम्बन्धी कुछ जरुरी नियम


भोजन करने सम्बन्धी कुछ जरुरी नियम
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१ पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !किउंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 ० घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2 : 3 0 घंटे पहले तक प्रवल रहती है
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में,अधिक शोर में,पीपल,वट वृक्ष के नीचे,भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध, लोभ ,रोग , दीन भाव,द्वेष भाव,के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा, बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का, राजा का,वेश्या के हाथ का,शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए
यह नियम आप जरुर अपनाये और फर्क देखें

Saturday, August 3, 2013

बुरे लोग.

पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करना हर धर्म सिखाता है लेकिन कितने हैं, जो ऐसा करते हैं। पड़ोसियों से अच्‍छा व्यवहार न करने का मतलब है कि आप खुद की और दूसरों की शांति भंग कर रहे हैं। आप जहां भी जाएंगे शांति भंग ही करते रहेंगे। ऐसे लोग हमेशा यदि सोचते रहते हैं कि शांति भंग करने वाला मैं नहीं पड़ोसी ही है, यह जाएगा तभी जीवन में शांति आएगी। ऐसे लोग एक दिन खुद बेघर हो जाते हैं।

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 आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या यानी आमदनी से अधिक खर्च करने वाले उधार लेकर भी जिंदगी बसर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते और एक दिन वे बुरे दौर में फंस जाते हैं। वे सोचते रहते हैं कि आज तो कर लो खर्चा कल से बचत करेंगे या ज्यादा खर्चा नहीं करेंगे। ऐसे लोगों को बुरा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इनकी वजह से दूसरों का जीवन भी संकट में आ जाता है।

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बहुत से लोग बहुत जल्द ही किसी के बारे में अपनी राय कायम कर उसकी तारीफ या निंदा करने लग जाते हैं, जो कि एक सामाजिक बुराई है। कुछ लोग तो एक-दो मुलाकात में ही किसी के बारे में अपनी राय कायम कर भाषण देने लग जाते हैं।

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आजकल धर्म की बुराई करने का फैशन है खासकर हिंदू धर्म की। लोग हिंदू धर्म की बुराई आसानी से कर सकते हैं, ‍क्योंकि यह धर्म लोगों की स्वतंत्रता को महत्व देता हैं। किसी देवी-देवता और ऋषि-मुनि की बुराई करने वाले लोग यह नहीं जानते हैं कि वे सभी देवी-देवता सुन रहे हैं जिनकी आप बुराई कर रहे हैं, मजाक उड़ा रहे हैं या जिन पर आप चुटकुले बना रहे हैं। जिन्होंने गहरा ध्यान किया है ऐसे लोग जानते हैं कि देवता होते हैं और वे सुनते हैं। ऐसे लोगों को सजा भी मिलती है। देवताओं का साथ छोड़ देना ही सजा है
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 लाखों लोग ऐसे हैं, जो दूसरों का धन हड़पने की इच्छा रखते हैं या हड़प ही लेते हैं। लाखों लोग ऐसे भी हैं, जो दूसरों का हक मारते रहते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन अब उन लोगों की संख्‍या भी बढ़ती जा रही है, जो दूसरों के विचार चुराकर उसे खुद का बताकर प्रस्तुत करते हैं। दूसरों का आइडिया चुराकर उसे खुद का आइडिया कहकर प्रस्तुत करते हैं। इस तरह का प्रयास भी धर्म में निषिद्ध कर्म कहा गया है।


बहुत से लोग ऐसे हैं, जो सिनेमा, नशा, पान आदि पर अनाप-शनाप खर्चा कर देते हैं लेकिन अपने द्वार या दुकान पर आए फकीरों और गरीबों को धक्का देकर भगा देते हैं।
ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि आज नहीं, कल यह कार्य कर लेंगे यानी किसी काम को ये सोचकर अधूरा छोड़ना कि फिर किसी दिन पूरा कर लिया जाएगा, यह लापरवाही जीवन में असफलता का कारण बन जाती है।

अहंकारी

खुद को दूसरों से बेहतर समझने वाले अहंकारी लोगों की भरमार है। ऐसे लोग अपनी अक्ल को सबसे बढ़कर समझते हैं। परमेश्वर ने सभी को दो हाथ, कान, नाक, दिमाग बनाकर दिया है। ज्यादा पढ़ने और सोचने या धन अर्जित करने से कोई दूसरों से बेहतर नहीं बन जाता। बड़े से बड़े ज्ञानियों के भी सुख-दुख गरीबों और अज्ञानियों के समान ही हैं।

शिक्षक

हम सभी जानते हैं कि भगवान और माता-पिता से भी बड़ा दर्जा गुरु या शिक्षक का माना जाता है। शिक्षक और विद्यार्थी का रिश्ता ही है इतना पवित्र, जिसमें जहां शिक्षक अपने सारे अच्छे गुण अपने विद्यार्थियों को सौंपना चाहता है वहीं विद्यार्थी भी उनका अनुसरण करते हुए अपने भविष्य की दिशा तय करते हैं।

शिक्षक हमें पूरे साल भर बहुत प्यारी-प्यारी बातें बताते हैं, तो एक दिन बच्चों को भी उनके लिए प्यारा-सा काम करना चाहिए। अगर हम अपने शिक्षक के लिए क्लास में अच्छा रिजल्ट लाते हैं तो सबसे ज्यादा खुशी उन्हें ही होती है। पर सिर्फ एक बार ही ऐसा क्यों?

क्या आपने सोचा है कि आपके शिक्षक (टीचर्स) आपसे क्या उम्मीद रखते हैं। इस क्रम में शिक्षक तो सभी को सीख देते ही हैं लेकिन कभी-कभी छात्र-छात्राएं ऐसे कार्य भी कर जाते हैं, जिनसे उनके शिक्षकों की छवि धूमिल हो जाती हैं। 
 आप अपने टीचर्स के पढ़ा-लिखा इंसान बनने का विश्वास भी दिलाएं, तभी आपके टीचर्स को आप पर गर्व होगा

बदला

मच्छर परिवार बहुत परेशान था। दिन पर दिन महंगाई बढ़ती जा रही थी और परिवार के सब प्राणी अब तक बेरोजगार थे। आखिर मांग-मांग कर कब तक गाड़ी खिचती। फिर कोई कब तक किसी को देता रहेगा।

मच्छरी ने अपने पति को सलाह दी कि 'क्यों न कोई धंधा चालू कर दिया जाए, बैठे-बैठे कौन खिलाएगा। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। दस बच्चों को मिलाकर हम लोग बारह लोग हैं, धंधा करेंगे तो घर के सब लोग ही व्यापार संभाल लेंगे और नौकरों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।'

'सलाह तो तुम्हारी उचित है परंतु कौन-सा धंधा करें, धंधे में पूंजी लगती है जो हमारे पास है नहीं - मच्छर बोला।

'ऐसे बहुत से धंधे हैं जिसमें थोड़े-सी पूंजी में ही काम चल जाता है। क्यों न हम पान की दुकान खोल लें। पूंजी भी नहीं लगेगी। सुबह थोक सामान ले आएंगे और शाम को बिक्री में से उधारी चुका देंगे।' - मच्छरी ने तरीका सुझाया। 

 
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'मगर क्या गारंटी की दुकान चल ही जाएगी?' - मच्छर बोला।
हम लोग पान के साथ तंबाकू, गुटका किमाम इत्यादि सब सामान रखेंगे, इन वस्तुओं की बहुत डिमांड है, बिक्री तो होगी ही।' - मच्छरी बोली।'

'बात तो सही कह रही हो। कल से दुकान प्रारंभ कर देते हैं।' इतना कहकर वह बाजार से दुकान का सब सामान आवश्यकतानुसार ले आया। दुकान चालू कर दी गई। वह और उसकी पत्नी दुकान पर बैठते। बच्चे भी बैठने लगे। बढ़िया पान लगते, तंबाकू और गुटखों के पैकेट बनते और देखते ही देखते दुकान का सारा सामान बिक जाता। मजे से खर्च चलने लगा।

एक दिन मच्छर ने महसूस किया कि उसके बच्चे दिन भर खांसते रहते हैं और कमजोर होते जा रहे हैं। उसने कारण जानने कि कोशिश की तो मालूम पड़ा कि बच्चे जब भी दुकान पर बैठते हैं, लगातार तंबाकू और गुटखा खाते रहते हैं। मच्छर परेशान हो गया। बच्चों को समझाया कि बेटे यह तंबाकू बहुत हानिकारक होती है, अधिक खाने से जान भी जा सकती है। किंतु बच्चे नहीं माने

 ग्राहक आते खुद तो पान-तंबाकू खाते ही, मच्छर पुत्रों को भी प्रेरित करते। आखिरकार एक-एक कर मच्छर के दसों पुत्र स्वर्गवासी हो गए। मच्छर ने गुस्से के मारे दुकान बंद कर दी।

आखिर उसके बच्चों की मृत्यु के जबाबदार इंसान ही तो थे, क्योंकि उनकी प्रेरणा से ही भोले-भाले बच्चे तंबाकू खाना सीखे थे।

ऐसा सोचकर मच्छर ने खुले आम घोषणा कर दी कि आगे से मच्छर‌ अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए कोई काम नहीं करेंगे सिर्फ आदमियों का खून चूसेंगे। तब से आज तक मच्छर इंसानों का खून चूस रहा है

swami ji

सभी मरेंगे ही, यही संसार का नियम है। साधु हो या असाधु, धनी हो या दरिद्र सभी मरेंगे। चिरकाल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

पछतावा

'ये जूते कितने के हैं?'
'साहब, आठ सौ पचास रुपए के।'
दुकानदार से भाव सुनकर धीरज बाबू ने अपने बेटे को धीरे से समझाया 'पुनीत! मैं तुम्हें दूसरी दुकान लिए चलता हूँ... ये जूते बहुत महँगे हैं।' दोनों उस दुकान से बाहर निकलने लगे।

'अरविंद के पिताजी और मेरे पिताजी एक ही पद पर हैं लेकिन दोनों में कितना अंतर है, उसके पिताजी उसकी हर माँग पूरी करते हैं, उसकी हर चीज कितनी अच्छी होती है और मेरे पिताजी को खरीदते समय कितना सोचते हैं?'

अपने मन पसंद जूतों को न खरीद पाने के कारण पुनीत मन ही मन झल्ला रहा था और अपने पिताजी की कंजूसी पर उसे क्रोध भी आ रहा था।

'मैं जो कपड़े पहनता हूँ, उससे अच्छे तुम्हें पहनाता हूँ। तुम तसल्ली रखो, मैं तुम्हें अच्छे जूते दिलवाऊँगा। बेटा! ईमानदारी के पैसों को फिजूल में खर्च करने की मैं हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ। तुम बड़े होकर समझोगे कि ईमान और बेईमानी के धन में क्या फर्क होता है।' अपनी बात पूरी कर पिताजी ने पुनीत के सिर पर हाथ रख दिया। पुनीत चाहकर भी निगाहें ऊपर नहीं कर पा रहा था।

पिताजी की बात सुनकर पुनीत को अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था, शायद इसीलिए उसके मन में अपने और अरविंद के पिताजी अब उसके लिए बुराई और अपने पिताजी श्रद्धा के पात्र बन गए थ