Monday, June 22, 2009

साहब

साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- ''''''''कल जो नया बाबू आया है,,,,,, उसे मेरे पास भेजो।'' ''''जी सर।'' ''थोड़ी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। ''''''''क्या नाम है?'' ''''''''जी ''अजय '';;;;;; ''घर कहां है?''
''मोतिहारी बिहार ,,,'' '''''''क्यों आज मंगलवार है?'' '''''''''नहीं सर,'''''' आज बुधवार है।'' साहब अभी तक फाइल में ही नजरे गड़ाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। '''''''''तुम मुझसे ज्यादा जानते हो?'''''''' ''नहीं सर!!!!!!!!''''''' मैंने आज सुबह अखबार में पढ़ा था।'' '''''''अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते है।'' ''लेकिन सर, मेरी कलाई घड़ी में भी आज बुधवार है।'' ''गेट आउट फ्राम हियर।''
संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बड़े बाबू मनोहर को बुलवाया। बड़े बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- ''क्यों बड़े बाबू, आज मंगलवार है?'' ''''''''जी सर।'''''''' ''गुड,''''' नाउ यू कैन गो।''

सायरन

hamare सारे जीवन में भोंपू-सायरन का बड़ा महत्व है,, हमें अपने बचपन की याद है,, jab हम गर्मी की छुट्टी बिताने मामा के घर kanpur शहर जाते थे। वहां कपड़ों की मिलें थीं। सबेरे- सबेरे फैक्टरी का भोंपू बजता,,,,, अपनी नींद उसी के साथ खुलती। हम मामा जी से उनके शहर की तारीफ करते। कितना प्यारा नगर है। हमारी मां को गलतफहमी थी कि, '''''''जो सोवत है, वो खोवत है।'' '''''''कुछ भी खोने से बचाने के लिए वह हमें भोर की बेला में कान पकड़कर उठा देती।'''''' मामा के यहां सोतों को जगाने के लिये भोंपू बजता है। कम से कम कान तो खिंचने से बचते है। विकल्प भी है। जो सोना चाहे, सोये'''''' जिसकी जागने की साध हो, जागे।
यों उनकी इस नियमित रियाज से हम सूरज के साथ और कभी-कभी पहले भी, जागने लगे थे ......यह उनकी रोज की कान खिंचाई की सफलता का सुखद परिणाम है। बेटा आज अफसर तो बना।

Saturday, June 13, 2009

MOBILE

तुम्हारा घर की छत की ओर भागना
सबसे बचते-बचाते
या भीतर के कमरे की ओर दौड़ना
सट से दरवाजा भिड़ा देना
या फिर लोगों के समूह में से
कहीं ओट में चले जाना
बता देता है सबको
जिसे चाहती हो तुम छुपाना
तुम्हे लगता है कोई
नहीं सुन पाया संवाद तुम्हारा
पर
तुम्हारे गालों का गुलाबीपन
आंखों की चमकीली नमी
होठों का गीलापन
कह देता है सब कुछ
जिसे चाहती हो तुम छुपाना।
(दो)
पहाड़ी की ओट से
निकल आया है आसमान में
पून्यो का चांद
आ रही है कहीं से
चूल्हे में सिंकते फुलके की
खुशबू
बढ़ा रही है जो मेरी नराई को
और भी ज्यादा।
ऐसे में मोबाइल
प्रतीत होता है मुझे
दुनिया की सबसे आत्मीय वस्तु
और उसकी घंटी
दुनिया का सबसे कर्णप्रिय संगीत।
एक महत्वपूर्ण सवाल कभी-कभी आप और हम सभी खुद से करते हैं कि मेरी जिंदगी का मुख्य मकसद क्या है और मुझे जिंदगी में क्या करना चाहिए? असल में तमाम लोगों के लिए इस सवाल का जवाब पाना आसान नहीं है। फिर भी आप चाहे, तो कुछ बातों पर अमल कर अपनी जिंदगी के मकसद को पा सकती है-
* अपने अंतर्मन की पुकार सुनें, जिसे सुनने के लिए आपको एकांत में खुद से सवाल करना होगा। ऐसा अभ्यास आपको कई बार करना पड़ सकता है। तभी आपको अपनी उन सच्ची इच्छाओं का पता लग सकेगा, जिन्हे आप जिंदगी में पूरा करना चाहते है।
* अपनी प्रसन्नता का अहसास करने के लिए भी वक्त निकालें। एक सार्थक व अर्थपूर्ण जिंदगी जीने की एक महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि आप स्वयं को कितना संतुष्ट महसूस कर रहे है।
* संभावनाओं को तलाशें। जीवन में प्रयोगवादी भी बनें। उन सभी संभावनाओं का खुलासा करने की कोशिश करे, जिनसे आपकी जिंदगी आनंद से परिपूर्ण हो सकती है।
* दुनिया में हो रहे बदलावों को समझें। खुद पर और अपने सपनों को साकार करने के संदर्भ में विश्वास रखें।
* अपने काम में पूरा मन लगाएं। जिस करियर या व्यवसाय को आप पसंद करते हों, उसका ही चयन करे। करियर के चयन में साहसिक पहल करे।
* जीवन में मुश्किल वक्त भी आता है। उतार-चढ़ाव जीवन का स्वाभाविक नियम है। मुश्किलों का सामना करे, पर मन में यह विश्वास रखें कि आप इन कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर लेंगी।
* परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस बात को हमेशा ध्यान रखें। इससे कभी भी जिंदगी में आपको निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
* सफलता की राह पर बहुत तेजी से कदम न दौड़ाएं, नहीं तो आप मंजिल तक पहुंचने से पहले थक जायेंगे ,,,,,,,, सामान्य सहज कदनों से प्रगति पथ पर आगे बढ़े। ऐसा करने से भी आप सहजता से कामयाबी की मंजिल पा लेंगे ...याद रखें हजारों मील का सफर पहले बढ़े हुए कदम से ही शुरू होता है।

Monday, June 8, 2009

अब नहीं होतीं दुल्हनें डोली में विदा

chalo रे, डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई। डोली के साथ दुल्हन की विदाई का मार्मिक चित्रण करता यह फिल्मी गीत गाहे-बगाहे रेडियो-टीवी में सुनने को भले ही मिल जाए,,,, हकीकत यह है कि आज कल हमारे समाज में डोली में दुल्हन को विदा करने की परंपरा खत्म सी हो चुकी है। इसकी जगह छोटी-बड़ी कारों ने ले ली है। डोली उठाने वाले कहारों को रोजगार की नई राह पकड़नी पड़ रही है। जनकपुर में स्वयंवर में भगवान शिव का धनुष तोड़कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जनक नंदनी सीता से शादी रचाई। शादी के बाद डोली से ही दुलारी जानकी ससुराल अयोध्या गई थी। .....आधुनिकता के लगातार बढ़ते प्रचलन व हाईटेक युग ने डोली प्रथा का वजूद मिटा दिया है।
उधर, डोली प्रथा के मिटते वजूद ने कहारों की जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया है। हमारे गांव के पास कहारों की बस्ती होती थी। कहारों की आजीविका का एकमात्र साधन डोली ही थी। जब प्रथा गुम होने लगी और डोली पुरानी बात तो कहारों ने आजीविका की राह बदल डाली।
जहां अब डोलियां बननी बंद हो चुकी है और कहार बड़ी तादाद में रोजगार के लिए या तो दूसरे धंधे में लग चुके हैं या बड़े शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। हां, अब डोलियां भले न दिखें, पर डोली सजा के रखना, आएंगे तेरे सजना.. जैसे गीत खूब बज रहे हैं।.........