Saturday, September 26, 2009

न आना इस देश लाडो

एक हफ्ते से घरों में नवरात्र की पूजा चल रही है। अष्टमी का बेसब्री से इंतजार है और आज अष्टमी भी आ गई। परंपराओं के अनुसार आज घर-घर में कन्याओं का पूजन होगा। इसके लिए कन्याओं की एडवांस बुकिंग हो चुकी है। शायद इस बार ढूंढने से आपको पूजने के लिए कन्याएं जरूर मिल जाएंगी, लेकिन आगे ऐसा आसानी से हो पाएगा कहना मुश्किल है। देश के कई हिस्सों में पहले ही हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 887-900 के खतरनाक स्तर तक आ गई है। देश के तमाम प्राइवेट हॉस्पिटल और घर पर होने वाली डिलीवरी के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह अंतर कहीं ज्यादा नजर आएगा। एक तरफ कन्याओं को पूजने और दूसरे तरफ कोख में ही मिटा देने के दुष्चक्र की कहानी भी अजीब है।
ये समाज का कौन सा चेहरा है जो एक तरफ साल में दो बार बेटियों की पूजा करता है, दूसरी तरफ अपने घर में बेटियों की किलकारी से उतना ही परहेज रखता है। नवरात्र के पवित्र दिनों में लोग दुर्गा की पूजा तो करते रहे, लेकिन दुर्गा रूप की आवाज इन दिनों में कमजोर से कमजोर होती गई। इस दौरान लड़कियों की मुकाबले लड़कों की पैदाईश ज्यादा हुई।

Saturday, September 19, 2009

अनूठी है शादी की साटा-पल्टा परंपरा

Sep 18, 11:46 am
बताएं

Delicious

विकासनगर [दीपक फस्र्वाण]। सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक ओर जहा नेट पर आसानी से आनलाइन मैरिज हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी बिरादरी भी है, जिसके रस्मोरिवाज खासतौर पर लड़के की शादी को जटिल बना देते हैं। उनमें दुल्हन लेने के बदले दुल्हन देने की प्रथा आज भी जीवित है। यदि देने के लिए दुल्हन न हो, तो दामाद को विवाह से पूर्व ही घर जमाई बना दिया जाता है, जिसे पाच से दस वर्ष तक लड़की के घर रहकर उनकी मवेशियों को चुगाने के साथ-साथ उनके लिए चारा-पत्ती का इंतजाम भी करना होता है।
एक और रोचक तथ्य यह कि इस बिरादरी में विवाह समारोह के दौरान किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग वर्जित है और महिला गीत के बजाए पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है।
बात वन गुर्जरों की हो रही है। इस बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज काफी रोचक हैं। वन गुर्जरों में छोटी सी उम्र [पांच से 10 वर्ष] में ही लड़के की शादी तय हो जाती है, लेकिन उसमें पारंपरिक नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। लड़के की शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान किया जाता है। अर्थात, वर पक्ष दुल्हन लेने के बदले कन्या पक्ष को भी दुल्हन देते हैं, जिसे साटा-पल्टा कहा जाता है।
यदि किसी के पास देने के दुल्हन न हो तो फिर दामाद को लड़की के घर शादी से पहले ही घर जमाई बनाकर रखा जाता है। दोनों पक्षों के बीच तय हुए निर्धारित समय [पांच से 15 वर्ष] तक लड़के को लड़की के घर रहकर उनके मवेशियों की देखरेख और उनके लिए चारा पत्ती के इंतजाम की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिम्मेदारियों पर खरा उतरने पर ही बाद में उसे दुल्हन सौंपी जाती है।
वन गुर्जर बिरादरी के शादी समारोह के रीतिरिवाज भी अनोखे हैं। शादी की तिथि निर्धारित होते ही बिरादरी का मुखिया पंचायत बुलाता है और सभी को शादी का न्योता देता है। गुर्जर अपनी भाषा में न्योता दिए जाने को गंढ कहते हैं। शादी के दिन बारातियों को दूध और मक्खन साथ में लाना अनिवार्य है।
न्योते के रूप में रुपये को अहमियत नहीं दी जाती है। समारोह में चावल, घी और बूरा की दावत चलती है। एक और खास बात यह है कि यहा शादी से एक दिन पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म मनाई जाती है। रस्म में महिला नहीं, बल्कि पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। पुरुष पूरी रात कान में अंगुली डालकर सूफियाना अंदाज में गाते हैं, जिसे बैंत कहा जाता है। पूरे समारोह में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।