एक हफ्ते से घरों में नवरात्र की पूजा चल रही है। अष्टमी का बेसब्री से इंतजार है और आज अष्टमी भी आ गई। परंपराओं के अनुसार आज घर-घर में कन्याओं का पूजन होगा। इसके लिए कन्याओं की एडवांस बुकिंग हो चुकी है। शायद इस बार ढूंढने से आपको पूजने के लिए कन्याएं जरूर मिल जाएंगी, लेकिन आगे ऐसा आसानी से हो पाएगा कहना मुश्किल है। देश के कई हिस्सों में पहले ही हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 887-900 के खतरनाक स्तर तक आ गई है। देश के तमाम प्राइवेट हॉस्पिटल और घर पर होने वाली डिलीवरी के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह अंतर कहीं ज्यादा नजर आएगा। एक तरफ कन्याओं को पूजने और दूसरे तरफ कोख में ही मिटा देने के दुष्चक्र की कहानी भी अजीब है।
ये समाज का कौन सा चेहरा है जो एक तरफ साल में दो बार बेटियों की पूजा करता है, दूसरी तरफ अपने घर में बेटियों की किलकारी से उतना ही परहेज रखता है। नवरात्र के पवित्र दिनों में लोग दुर्गा की पूजा तो करते रहे, लेकिन दुर्गा रूप की आवाज इन दिनों में कमजोर से कमजोर होती गई। इस दौरान लड़कियों की मुकाबले लड़कों की पैदाईश ज्यादा हुई।
Saturday, September 26, 2009
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1 comment:
आचरण में विरोधाभास को सशक्त रूप में सामने लायें है आप.
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