70 के दशक की दाता फिल्म का सुविख्यात गीत बाबुल का यह घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है, ,,,,,बन के दुल्हन एक दिन पिया के घर जाना है.,,,,,.। वर्तमान समय में यह गीत उतना प्रासंगिक नहीं रह गया है, ,,,,,क्योंकि आधुनिकता की चकाचौंध में बिटिया बाबुल के घर से नहीं बल्कि मैरिज हाल से विदा हो रही हैं।,,,,
बिटिया दुल्हन बन रही हैं, ,उनका घर-आंगन छूट रहा है।, बचपन की सहेली भी छूट रही है, लेकिन बाबुल के घर से विदा होने की परंपरा अब स्मृति शेष बनकर रह गई है।,,,, अब लोग घर से शादी करना अपने शान के खिलाफ समझ रहे हैं। मजबूरी से शुरू हुई मैरिज हाल में शादी अब स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। लोग मैरिज हाल से शादी के कई फायदे गिनाते हैं।
हालात यह है कि अब लोग मैरिज हाल की बुकिंग देखकर शादियों की तिथि तय करने लगे हैं। लड़का-लड़की दोनों पक्ष के लोग मैरिज हाल में आकर एक ही दिन तिलक, मटकोर, शादी एवं उसके बाद बहूभोज तक कर रहे हैं। हाल का एक दिन का किराया छह से 40 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। मेरे एक दोस्त जो की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले नीतेश कुमार वर्मा की शादी इसी माह 14 दिसंबर को है। वे कहते हैं, अब कौन झंझट करे घर से शादी करके। ,,,,मैरिज हाल में एक ही जगह सबकुछ मिल जा रहा है।,, जाइए शादी कर दुल्हन को लेते आइए।,, सबकुछ पलक झपकते।
फ्लैट संस्कृति भी एक कारण है। इसका एक फायदा यह है कि इस महंगाई में लड़का-लड़की दोनों पक्ष खर्च को शेयर कर लेते हैं।,, समय की भी बचत होती है।
Tuesday, December 8, 2009
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