Tuesday, December 8, 2009

अब बाबुल के घर से विदा नहीं होतीं बेटियां

70 के दशक की दाता फिल्म का सुविख्यात गीत बाबुल का यह घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है, ,,,,,बन के दुल्हन एक दिन पिया के घर जाना है.,,,,,.। वर्तमान समय में यह गीत उतना प्रासंगिक नहीं रह गया है, ,,,,,क्योंकि आधुनिकता की चकाचौंध में बिटिया बाबुल के घर से नहीं बल्कि मैरिज हाल से विदा हो रही हैं।,,,,
बिटिया दुल्हन बन रही हैं, ,उनका घर-आंगन छूट रहा है।, बचपन की सहेली भी छूट रही है, लेकिन बाबुल के घर से विदा होने की परंपरा अब स्मृति शेष बनकर रह गई है।,,,, अब लोग घर से शादी करना अपने शान के खिलाफ समझ रहे हैं। मजबूरी से शुरू हुई मैरिज हाल में शादी अब स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। लोग मैरिज हाल से शादी के कई फायदे गिनाते हैं।
हालात यह है कि अब लोग मैरिज हाल की बुकिंग देखकर शादियों की तिथि तय करने लगे हैं। लड़का-लड़की दोनों पक्ष के लोग मैरिज हाल में आकर एक ही दिन तिलक, मटकोर, शादी एवं उसके बाद बहूभोज तक कर रहे हैं। हाल का एक दिन का किराया छह से 40 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। मेरे एक दोस्त जो की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले नीतेश कुमार वर्मा की शादी इसी माह 14 दिसंबर को है। वे कहते हैं, अब कौन झंझट करे घर से शादी करके। ,,,,मैरिज हाल में एक ही जगह सबकुछ मिल जा रहा है।,, जाइए शादी कर दुल्हन को लेते आइए।,, सबकुछ पलक झपकते।
फ्लैट संस्कृति भी एक कारण है। इसका एक फायदा यह है कि इस महंगाई में लड़का-लड़की दोनों पक्ष खर्च को शेयर कर लेते हैं।,, समय की भी बचत होती है।

Saturday, September 26, 2009

न आना इस देश लाडो

एक हफ्ते से घरों में नवरात्र की पूजा चल रही है। अष्टमी का बेसब्री से इंतजार है और आज अष्टमी भी आ गई। परंपराओं के अनुसार आज घर-घर में कन्याओं का पूजन होगा। इसके लिए कन्याओं की एडवांस बुकिंग हो चुकी है। शायद इस बार ढूंढने से आपको पूजने के लिए कन्याएं जरूर मिल जाएंगी, लेकिन आगे ऐसा आसानी से हो पाएगा कहना मुश्किल है। देश के कई हिस्सों में पहले ही हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 887-900 के खतरनाक स्तर तक आ गई है। देश के तमाम प्राइवेट हॉस्पिटल और घर पर होने वाली डिलीवरी के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह अंतर कहीं ज्यादा नजर आएगा। एक तरफ कन्याओं को पूजने और दूसरे तरफ कोख में ही मिटा देने के दुष्चक्र की कहानी भी अजीब है।
ये समाज का कौन सा चेहरा है जो एक तरफ साल में दो बार बेटियों की पूजा करता है, दूसरी तरफ अपने घर में बेटियों की किलकारी से उतना ही परहेज रखता है। नवरात्र के पवित्र दिनों में लोग दुर्गा की पूजा तो करते रहे, लेकिन दुर्गा रूप की आवाज इन दिनों में कमजोर से कमजोर होती गई। इस दौरान लड़कियों की मुकाबले लड़कों की पैदाईश ज्यादा हुई।

Saturday, September 19, 2009

अनूठी है शादी की साटा-पल्टा परंपरा

Sep 18, 11:46 am
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विकासनगर [दीपक फस्र्वाण]। सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक ओर जहा नेट पर आसानी से आनलाइन मैरिज हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी बिरादरी भी है, जिसके रस्मोरिवाज खासतौर पर लड़के की शादी को जटिल बना देते हैं। उनमें दुल्हन लेने के बदले दुल्हन देने की प्रथा आज भी जीवित है। यदि देने के लिए दुल्हन न हो, तो दामाद को विवाह से पूर्व ही घर जमाई बना दिया जाता है, जिसे पाच से दस वर्ष तक लड़की के घर रहकर उनकी मवेशियों को चुगाने के साथ-साथ उनके लिए चारा-पत्ती का इंतजाम भी करना होता है।
एक और रोचक तथ्य यह कि इस बिरादरी में विवाह समारोह के दौरान किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग वर्जित है और महिला गीत के बजाए पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है।
बात वन गुर्जरों की हो रही है। इस बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज काफी रोचक हैं। वन गुर्जरों में छोटी सी उम्र [पांच से 10 वर्ष] में ही लड़के की शादी तय हो जाती है, लेकिन उसमें पारंपरिक नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। लड़के की शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान किया जाता है। अर्थात, वर पक्ष दुल्हन लेने के बदले कन्या पक्ष को भी दुल्हन देते हैं, जिसे साटा-पल्टा कहा जाता है।
यदि किसी के पास देने के दुल्हन न हो तो फिर दामाद को लड़की के घर शादी से पहले ही घर जमाई बनाकर रखा जाता है। दोनों पक्षों के बीच तय हुए निर्धारित समय [पांच से 15 वर्ष] तक लड़के को लड़की के घर रहकर उनके मवेशियों की देखरेख और उनके लिए चारा पत्ती के इंतजाम की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिम्मेदारियों पर खरा उतरने पर ही बाद में उसे दुल्हन सौंपी जाती है।
वन गुर्जर बिरादरी के शादी समारोह के रीतिरिवाज भी अनोखे हैं। शादी की तिथि निर्धारित होते ही बिरादरी का मुखिया पंचायत बुलाता है और सभी को शादी का न्योता देता है। गुर्जर अपनी भाषा में न्योता दिए जाने को गंढ कहते हैं। शादी के दिन बारातियों को दूध और मक्खन साथ में लाना अनिवार्य है।
न्योते के रूप में रुपये को अहमियत नहीं दी जाती है। समारोह में चावल, घी और बूरा की दावत चलती है। एक और खास बात यह है कि यहा शादी से एक दिन पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म मनाई जाती है। रस्म में महिला नहीं, बल्कि पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। पुरुष पूरी रात कान में अंगुली डालकर सूफियाना अंदाज में गाते हैं, जिसे बैंत कहा जाता है। पूरे समारोह में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।

Monday, August 31, 2009

सच का SAMNA

It,s very easy to say that it is a very good n successful programe but a lot of courage needed this type of venture. ,,,now
A DAYS PEOPLE HAVE BECAME SO BOLD OR OPEN, THAT IS WHY THEY ARE NOT HESITATING TO TELL THE TROUTH IN FRONT OF THE WORLD।MY REQUEST OR WHISH IS THAT YOU MUST BRING SOME POLITICIAN OR BUROCRATES SPECIALLY THE CORRUPT ONE.

Wednesday, July 8, 2009

बाँध के रखो इन ख्यालो को....कम्बखत आसमां तक उडान भरते है "

Thursday, July 2, 2009

उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।

अभी चंद रोज़ पहले अपने एक मित्र ललित के साथ साईं संध्या में जाने का अवसर प्राप्त हुआ.....मैं ॐ नगर में रहता हूँ और ये आयोजन हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था.....साईं बाबा में लोगों की कितनी आस्था है ये बताने के लिए वहा जमा भीड़ ही काफी थी। बड़ा ही भव्य आयोजन था। साईं बाबा की सोने की प्रतिमा और भक्तों की आस्था .........सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।"मैं यूं तो सहज ही महिलाओं के प्रति आकर्षित हो जाता हूँ मगर उस दिन मेरे आकर्षण की एक दूसरी वजह थी......महिलाओं और बालिकाओं के चेहरे पर मेक अप की बहुत मोटी परत चढी हुई थी....क्षण भर के लिए तो ये भ्रम हो गया की कहीं हम किसी उच्चस्तरीय विवाह में तो नहीं आ गए......वहां जमा भक्तों की भीड़ को देखकर मुझे इस सत्य का बोध हुआ की किसी भी धार्मिक समारोह में भली प्रकार सज धज कर जाना चाहिए। महिलाओं और बालिकाओं के चेहरों की चमक......उनकी भौंहों का संकरापन......और उनके महंगे आभूषण ये बयां करने के लिये काफी थे की वो पिछले तीन चार दिनों से इस आयोजन की तैयारियाँ कर रही होंगी।......"सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।"प्रसाद के रूप मे रात्रिभोज की व्यवस्था भी थी.....हम भी प्रसाद लेने के उदेश्य से संभ्रांत वर्ग की पंक्ति मे खड़े हो गये.....उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस आयोजन मे सबसे ग़रीब हम ही हैं॥ .फिर भी भगवान के दरबार मे ये भेद कहाँ होता है ... ये सोचकर मैं कतार ने निश्चिंत खड़ा रह... ॥ ....खैर प्रसाद का वितरण सुचारू रूप से चल रहा था...इतने मे एक व्यक्ति जो शायद फुटपाथ पर रहता था या संभवता रेहड़ लगता होगा वो पंडाल मे आया...उसने सोचा की बाबा का भंडारा है चलो यहीं भोजन हो जाएगा...लेकिन उसके बाद की घटना ने मुझे हतप्रभ कर दिया....कुछ आयोजनकर्ताओ और कुछ भक्तों ने उस बेचारे को दुतकार कर बाहर भगा दिया ..........."सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया."।............... सर्वप्रथम मैं ये बता देना चाहूँगा कि मैं कोई लेखक नहीं हूँ..... बस अपने मन के कुछ विचार यहाँ पर प्रकट कर रहा हूँ ......अतः लेखन कि त्रुटियों को क्षमा करें.....



Monday, June 22, 2009

साहब

साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- ''''''''कल जो नया बाबू आया है,,,,,, उसे मेरे पास भेजो।'' ''''जी सर।'' ''थोड़ी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। ''''''''क्या नाम है?'' ''''''''जी ''अजय '';;;;;; ''घर कहां है?''
''मोतिहारी बिहार ,,,'' '''''''क्यों आज मंगलवार है?'' '''''''''नहीं सर,'''''' आज बुधवार है।'' साहब अभी तक फाइल में ही नजरे गड़ाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। '''''''''तुम मुझसे ज्यादा जानते हो?'''''''' ''नहीं सर!!!!!!!!''''''' मैंने आज सुबह अखबार में पढ़ा था।'' '''''''अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते है।'' ''लेकिन सर, मेरी कलाई घड़ी में भी आज बुधवार है।'' ''गेट आउट फ्राम हियर।''
संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बड़े बाबू मनोहर को बुलवाया। बड़े बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- ''क्यों बड़े बाबू, आज मंगलवार है?'' ''''''''जी सर।'''''''' ''गुड,''''' नाउ यू कैन गो।''

सायरन

hamare सारे जीवन में भोंपू-सायरन का बड़ा महत्व है,, हमें अपने बचपन की याद है,, jab हम गर्मी की छुट्टी बिताने मामा के घर kanpur शहर जाते थे। वहां कपड़ों की मिलें थीं। सबेरे- सबेरे फैक्टरी का भोंपू बजता,,,,, अपनी नींद उसी के साथ खुलती। हम मामा जी से उनके शहर की तारीफ करते। कितना प्यारा नगर है। हमारी मां को गलतफहमी थी कि, '''''''जो सोवत है, वो खोवत है।'' '''''''कुछ भी खोने से बचाने के लिए वह हमें भोर की बेला में कान पकड़कर उठा देती।'''''' मामा के यहां सोतों को जगाने के लिये भोंपू बजता है। कम से कम कान तो खिंचने से बचते है। विकल्प भी है। जो सोना चाहे, सोये'''''' जिसकी जागने की साध हो, जागे।
यों उनकी इस नियमित रियाज से हम सूरज के साथ और कभी-कभी पहले भी, जागने लगे थे ......यह उनकी रोज की कान खिंचाई की सफलता का सुखद परिणाम है। बेटा आज अफसर तो बना।

Saturday, June 13, 2009

MOBILE

तुम्हारा घर की छत की ओर भागना
सबसे बचते-बचाते
या भीतर के कमरे की ओर दौड़ना
सट से दरवाजा भिड़ा देना
या फिर लोगों के समूह में से
कहीं ओट में चले जाना
बता देता है सबको
जिसे चाहती हो तुम छुपाना
तुम्हे लगता है कोई
नहीं सुन पाया संवाद तुम्हारा
पर
तुम्हारे गालों का गुलाबीपन
आंखों की चमकीली नमी
होठों का गीलापन
कह देता है सब कुछ
जिसे चाहती हो तुम छुपाना।
(दो)
पहाड़ी की ओट से
निकल आया है आसमान में
पून्यो का चांद
आ रही है कहीं से
चूल्हे में सिंकते फुलके की
खुशबू
बढ़ा रही है जो मेरी नराई को
और भी ज्यादा।
ऐसे में मोबाइल
प्रतीत होता है मुझे
दुनिया की सबसे आत्मीय वस्तु
और उसकी घंटी
दुनिया का सबसे कर्णप्रिय संगीत।
एक महत्वपूर्ण सवाल कभी-कभी आप और हम सभी खुद से करते हैं कि मेरी जिंदगी का मुख्य मकसद क्या है और मुझे जिंदगी में क्या करना चाहिए? असल में तमाम लोगों के लिए इस सवाल का जवाब पाना आसान नहीं है। फिर भी आप चाहे, तो कुछ बातों पर अमल कर अपनी जिंदगी के मकसद को पा सकती है-
* अपने अंतर्मन की पुकार सुनें, जिसे सुनने के लिए आपको एकांत में खुद से सवाल करना होगा। ऐसा अभ्यास आपको कई बार करना पड़ सकता है। तभी आपको अपनी उन सच्ची इच्छाओं का पता लग सकेगा, जिन्हे आप जिंदगी में पूरा करना चाहते है।
* अपनी प्रसन्नता का अहसास करने के लिए भी वक्त निकालें। एक सार्थक व अर्थपूर्ण जिंदगी जीने की एक महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि आप स्वयं को कितना संतुष्ट महसूस कर रहे है।
* संभावनाओं को तलाशें। जीवन में प्रयोगवादी भी बनें। उन सभी संभावनाओं का खुलासा करने की कोशिश करे, जिनसे आपकी जिंदगी आनंद से परिपूर्ण हो सकती है।
* दुनिया में हो रहे बदलावों को समझें। खुद पर और अपने सपनों को साकार करने के संदर्भ में विश्वास रखें।
* अपने काम में पूरा मन लगाएं। जिस करियर या व्यवसाय को आप पसंद करते हों, उसका ही चयन करे। करियर के चयन में साहसिक पहल करे।
* जीवन में मुश्किल वक्त भी आता है। उतार-चढ़ाव जीवन का स्वाभाविक नियम है। मुश्किलों का सामना करे, पर मन में यह विश्वास रखें कि आप इन कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर लेंगी।
* परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस बात को हमेशा ध्यान रखें। इससे कभी भी जिंदगी में आपको निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
* सफलता की राह पर बहुत तेजी से कदम न दौड़ाएं, नहीं तो आप मंजिल तक पहुंचने से पहले थक जायेंगे ,,,,,,,, सामान्य सहज कदनों से प्रगति पथ पर आगे बढ़े। ऐसा करने से भी आप सहजता से कामयाबी की मंजिल पा लेंगे ...याद रखें हजारों मील का सफर पहले बढ़े हुए कदम से ही शुरू होता है।

Monday, June 8, 2009

अब नहीं होतीं दुल्हनें डोली में विदा

chalo रे, डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई। डोली के साथ दुल्हन की विदाई का मार्मिक चित्रण करता यह फिल्मी गीत गाहे-बगाहे रेडियो-टीवी में सुनने को भले ही मिल जाए,,,, हकीकत यह है कि आज कल हमारे समाज में डोली में दुल्हन को विदा करने की परंपरा खत्म सी हो चुकी है। इसकी जगह छोटी-बड़ी कारों ने ले ली है। डोली उठाने वाले कहारों को रोजगार की नई राह पकड़नी पड़ रही है। जनकपुर में स्वयंवर में भगवान शिव का धनुष तोड़कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जनक नंदनी सीता से शादी रचाई। शादी के बाद डोली से ही दुलारी जानकी ससुराल अयोध्या गई थी। .....आधुनिकता के लगातार बढ़ते प्रचलन व हाईटेक युग ने डोली प्रथा का वजूद मिटा दिया है।
उधर, डोली प्रथा के मिटते वजूद ने कहारों की जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया है। हमारे गांव के पास कहारों की बस्ती होती थी। कहारों की आजीविका का एकमात्र साधन डोली ही थी। जब प्रथा गुम होने लगी और डोली पुरानी बात तो कहारों ने आजीविका की राह बदल डाली।
जहां अब डोलियां बननी बंद हो चुकी है और कहार बड़ी तादाद में रोजगार के लिए या तो दूसरे धंधे में लग चुके हैं या बड़े शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। हां, अब डोलियां भले न दिखें, पर डोली सजा के रखना, आएंगे तेरे सजना.. जैसे गीत खूब बज रहे हैं।.........

Thursday, April 30, 2009

जिंदगी प्यार मांगती है

सुबह से शाम तक थकी हुई जिंदगी !

ऑफिस की फाइलों से बंधी हुई जिंदगी !!

मशीनों के पुर्जों SANG ढली हुई जिंदगी ॥

चाय के प्यालों से पली हुई जिंदगी .....

जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!!!!

चांदीके टुकडों में बिकी हुई जिंदगी

धुले हुए कपडों से ढकी हुई जिंदगी

कल के ख्यालों में डूबी हुई जिंदगी

अपने ही दुखादों से उबी हुई जिंदगी

जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!

जिंदगी प्यार मांगती है

Wednesday, April 29, 2009

इंसान

इंसान है वही जो रोटी को बाँट खाए!!
हैवान है जो भूखा देखे तो काट खाए!!

बुढापे की लाठी

बुढापा एक विकार!

हीनता का शिकार

बेटा बाप के बुढापे की लाठी !

पर बदल गई परिपाटी ,,,,

बाप की पेंशन ,बेरोजगार बेटे की रोटी,

क्योंकि योग्यता के अनैतिक मापदंड में ,,बेटे की पहुँच है बहुत छोटी !!!!

Tuesday, April 28, 2009

प्राथमिक शिक्षा

जो राजनेता शायद ही कभी एयर कंडीशन कमरों से बाहर निकलते हों वे भी चुनाव के मौके पर गांवों में जाकर गरीबों के बच्चों को गोद में लेकर पुचकारते नजर आते है या फिर गरीब बूढ़ी औरत के सामने हाथ जोड़े दिखाई देते हैं। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि जैसे गरीबों की सबसे अधिक चिंता इन्हीं की पार्टी को है। गरीब और गरीबी, दोनों को ही अपने देश में इन बड़े-बड़े राजनेताओं ने मजाक की वस्तु बना दिया है। तरह-तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। रोज नए-नए वायदे किए जा रहे है। समाज को हाईटेक बनाने की बात तो खूब हो रही है, लेकिन क्या किसी भी पार्टी ने अपने चुनावी मुद्दे में गरीब बच्चों की शिक्षा को भी मुद्दा बनाया है? हम खुद को तथाकथित पढ़े-लिखे समाज का अंग मानते हैं और यही पढ़े-लिखे लोग बिना सोचे-समझे ही एक बाहुबली और भ्रष्ट नेता को वोट देते हैं। जो कम पढ़ा-लिखा है उसे क्या पता लोकतंत्र क्या है? उसे तो जो भी बहला-फुसला ले ले उसे अपना वोट दे देगा। पढ़े-लिखे लोग बड़ी-बड़ी बातें करेंगे, समाज को बदलने की बात करेंगे, लेकिन चुनाव के दिन घर से बाहर ही नहींनिकलेंगे। ऐसे में देश भर में फैले अशिक्षा के माहौल के लिए पढ़े-लिखे लोग ही कहींज्यादा जिम्मेदार हैं।
जब भी शिक्षा की बात की जाती है तो लोग देश में रोज खुल रही नई-नई यूनिवर्सिटी, आईआईटी,मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग संस्थान का उदाहरण देते हैं। लेकिन प्राथमिक शिक्षा के नाम पर क्या हो रहा है? सरकारी अफसर, शिक्षा जगत से जुड़े सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तार बड़ी आसानी से देते है कि 'मिड डे मील' जैसी योजनाएं चलाकर गांव-गांव में स्कूल खोल तो दिए गए हैं, अब लोग बच्चों को नियमित स्कूल भेजते ही नहीं तो सरकार क्या करे? क्या गांव में स्कूल के नाम पर कुछ टूटे-फूटे कमरे और उसमें एक शिक्षक रख देने भर से स्कूल बन जाता है? आज भी हमारे देश में बच्चों की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा विद्यालय नहीं जा पाता। जो 40 प्रतिशत बच्चे विद्यालय जाते भी हैं वे कुछ भी सीख नहीं पाते। ऐसे में अभिभावक निराश होकर अपने बच्चों को विद्यालय भेजना बंद कर देते हैं। यह अच्छी बात है कि देश में उच्च शिक्षण संस्थान खुलें, लेकिन जब तक हमारे देश में इन गरीब बच्चों की प्राइमरी शिक्षा के लिए पर्याप्त स्कूल नहीं खुलते तब तक एक भी नई यूनिवर्सिटी को खोला जाना बेईमानी है। जितनी लागत में एक नई यूनिवर्सिटी खुलती है और सालना उसके रखरखाव में खर्च होता है उतने खर्च में तो हजारों प्राइमरी स्कूल खोले जा सकते हैं, जहां गरीबों के बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था की जा सकती है। उच्च शिक्षा के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाना और प्राथमिक शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाओं को भी मुहैया न कराना कहां का न्याय है।
उच्च शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। आज हर पूंजीपति और उद्योगपति प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज, यूनिवर्सिटी आदि खोलकर खूब कमाई कर रहा है। पहले पैसे वाले उद्योगपति समाज सेवा के नाम पर धर्मार्थ विद्यालय व चिकित्सालय खोलते थे, लेकिन आज के व्यवसायीकरण के माहौल में यह परंपरा बिल्कुल बंद हो गई है। सरकार प्रौढ़ शिक्षा की बात करती है। इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन क्या यह सत्य नहीं कि अगर आजादी के बाद सरकार ने ईमानदारीपूर्वक गरीब बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा का अभियान चलाया होता तो आज किसी प्रौढ़ को शिक्षित करने की जरूरत नहीं पड़ती। शिक्षा से समाज में फैली अधिकांश समस्याएं अपने आप ही हल हो जाती हैं। जिन अनेक योजनाओं पर सरकार वर्र्षो से पैसा लुटा रही है उनका समाधान साक्षरता से हो सकता था। जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, गरीबी, बाल मजदूरी जैसी समस्याएं शिक्षा के प्रसार से अपने आप कम हो जाएंगी। आखिर निर्धन वर्ग के बच्चे को इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिए कि वह अभाव में भी लिख-पढ़ सके। तभी वह लोकतंत्र, चुनाव का मतलब समझ सकेगा। सिर्फ यह कह देने से काम नहींचलेगा कि हमारे देश में लोकतंत्र है, संविधान लागू है अथवा जनता द्वारा निर्वाचित सरकार जनता के लिए है। गरीबों की शिक्षा का उपहास उड़ाना बंद कर कुछ मजबूत कदम उठाए जाएं, तभी स्थिति में कुछ सुधार होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तर्ज पर बेसिक शिक्षा के लिए भी एक अनुदान आयोग बनना चाहिए। सरकार को ऐसे प्रयास भी करने चाहिए जिससे उद्योगपति तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के संस्थान अथवा अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल खोलने के साथ-साथ गांवों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए भी स्कूल खोलने के लिए आगे आएं। इसके लिए सरकार को नीतिगत स्तर पर ठोस पहल करनी होगी।

Monday, April 27, 2009

युवाओं ने किया निराश

इस बार मैंने भी अपने मताधिकार का प्रोयोग किया,वैसे मेरी उम्र २४ साल है लेकिन जब भी चुनाव होता था तो हम हमेशा बहार ही रहते थे पहले पढाई फिर रोजगार के सिलसिले में,गाँव के लोगो में अभी भी अशिक्षा है भले ही वो लोग हाई स्कूल , इंटर या बीऐ कर ले।मैंने जो देखा वो लिख रहा हूँ इस बार चुनाव में शरीर की हड्िडयों का बोझा उठाने वाले बूढ़ों में मताधिकार के प्रति जो जज्बा दिखाई पड़ा उसे भुलाया नहीं जा सकता, वहीं देश के नेतृत्व की बागडोर संभालने का दंभ भरने वाले युवाओं में वह उत्साह नहीं दिखाई पड़ा। हमारे गाँव बेलहा के रहने वाले एक सौ वर्षय रामस्वरूप जब लाठी के सहारे बूथ पर वोट डालने पहुंचे तो वहां खड़े बाकी मतदाताओं की आंखें आश्चर्य से फट गयीं। इस उम्र में भी राम स्वरूप ने जागरूकता का जो परिचय दिया, उससे युवाओं को सबक लेना चाहिए। ऐसा वहां के लोगों का कहना था। यही नहीं पीठासीन अधिकारी व मतदान कर्मी भी रामस्वरूप के इस हौसले को सलाम किये बिन रह नहीं पाये। इस बार के लोकसभा के चुनाव में बूथों पर युवाओं का जोश नहीं दिखाई दिया। मतदान केन्द्रों पर चालीस के ऊपर के ही मतदाता अधिक दिखायी पड़े। महिलाओं में इस बार जोश अधिक दिखा।
राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बदली हुई परिस्थिति में भी एक से बढ़कर एक युवाओं ने राजनीति के पटल पर अपनी पहचान बनायी है। राजनीति के इतिहास के पन्ने पलटे जायं तो ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। राजनीति के समीकरण का गुणा भाग इन्हीं के कंधों पर टिका है। दिशा व दशा बदलने वाले यही युवा इस बार के लोकसभा के चुनाव में घरों से बाहर नही निकले। बूथों पर केवल उम्र दराज मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करते देखा गया। युवाओं के वोट न करने से वोट का प्रतिशत भी गिरा है। ऐसा नहीं है कि इनमें जागरूकता का अभाव था। बताया जाता है कि इन्होंने चुनाव में रुचि ही नही ली। जबकि पिछले चुनावों के आंकड़े यह बताते हैं कि युवाओं ने जमकर वोट किया था। कुछ युवा अगर दिखे भी तो वे एजेंट के रूप में ही काम करते नजर आये। इनमें भी कोई खासा उत्साह नही दिखाई दिया। वहीं उत्साह से लबरेज रामस्वरूप ने जिस तरह से इस उम्र में वोट डाला, उससे आज के युवाओं को सबक लेना चाहिए।

गांवों में ढिबरी के सहारे अंधेरे से जंग

मै आज ही गाँव से वापस आया हूँ,जो कुछ भी हम ने गाँव में देखा या अनुभव किया मै यहाँ पर लिख रहा हूँ......... घर-घर बिजली पहुंचाने का सरकारी दावा बेल्हा (प्रतापगढ़) में बहुत दमदार नहीं दिखता। यहां आज भी ऐसे बहुत से गांव है जहां ढिबरी की रोशनी में लोग जीने को मजबूर है।......यहां के बच्चों की आंखों पर ढिबरी का ऐसा कार्बन जमा कि उनकी आंखों में चश्मा कम ही उम्र में लग गया।,,,,, उन्हे अंधेरे से दूर करने की सारी योजनाएं विफल हो चुकी है। अब उन्हे कौन रोशनी उपलब्ध करायेगा, उन्हे किसी पर भरोसा नहीं है। जनपद में कई ऐसे गांव है जो आजादी के बाद भी रोशन नहीं हो पा रहे है। इन गांवों को रोशनी करने के लिए ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया लेकिन किसी ने इनकी जरूरतों को नहीं समझा। शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है। दिखाई देता है तो बस ढिबरी की लपक से 6 दशक बीत गये लेकिन किसी ने इन ग्राम सभाओं की ओर ध्यान नहीं दिया। वैसे तो सरकार ने गांवों का विद्युतीकरण करने के लिए जनपद को करोड़ों रुपये दिया लेकिन जनपद में कुछ ऐसे गांव है जिन गांवों में अभी तक विद्युत की रोशनी नहीं पहुंच पायी है। आज भी किसी त्यौहार व उत्सव में भी प्राइवेट बिजली व्यवस्था या तो केरोसिन से चलने वाले गैस का ही सहारा लेना पड़ता है। इन ग्राम वासियों से विद्युत लगने की बात करने पर कहते है कि हम लोग कई बार जनप्रतिनिधियों के पास गये है। आश्वासन के अलावा अभी तक ग्राम सभा में विद्युतीकरण के लिए प्रतिनिधि ने गांव के लिए पैसा मुहैया नहीं कराया। आज भी शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है बच्चे दीपक की रोशनी में पढ़ने के लिए मजबूर है। इससे आये दिन उनको आंख व अन्य बीमारियों से पीड़ित रहना पड़ता है। ऐसा भी नहीं है कुछ गांव के लिए जनप्रतिनिधियों के चक्कर बराबर लगा है। यह लोग इन जनप्रतिनिधियों का वादा माने या विभाग की लापरवाही लेकिन विद्युत विभाग के अधिकारी यह जरूर मान रहे है कि अभी भी जनपद में सौ से अधिक गांव विद्युत विभाग की रोशनी से कोसो दूर है।

Friday, April 10, 2009

वोट carefully this year.

One day a florist goes to a barber for a haircut. After the cut he asked about his bill and the barber replies, 'I cannot accept money from you. I'm doing community service this week.' The florist was pleased and left the shop.When the barber goes to open his shop the next morning there is a 'thank you' card and a dozen roses waiting for him at his door.Later, a cop comes in for a haircut, and when he tries to pay his bill, the barber again replies, 'I cannot accept money from you. I'm doing community service this week.' The cop is happy and leaves the shop.The next morning when the barber goes to open up there is a 'thank you' card and a dozen donuts waiting for him at his door.Later that day, a college professor comes in for a haircut, and when he tries to pay his bill, the barber again replies, 'I cannot accept money from you. I'm doing community service this week.' The professor is very happy and leaves the shop.The next morning when the barber opens his shop, there is a 'thank you' card and a dozen different books, such as 'How to Improve Your Business' and 'Becoming More Successful.'Then, a Member of Parliament comes in for a haircut , and when he goes to pay his bill the barber again replies, 'I cannot accept money from you. I'm doing community service this week.' The Member of Parliament is very happy and leaves the shop.The next morning when the barber goes to open up, there are a dozen Members of Parliament lined up waiting for a free haircut.And that, my friends, illustrates the fundamental difference between the citizens of our country and the Members of Parliament.,,,,,,,,Vote carefully this year.

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

अधरों पर शब्दों को लिख के मन के भेद न खोलो ,,,,,मै आँखों से सुन सकता हूँ तुम आँखों से बोलो ,,सत्य बहुत तीखा होता है, सोच समझ कर बोलो !!!!

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फ़ुटपाथ पर पड़ा था>>>>>>>>>, वो भूख से मरा था>>>>>>>>>> कपड़ा उठा के देखा>>>>>>>>> तो पेट पे लिखा था… -""""सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा""… ----------------------------------------

voting

Voting should be mandatory ,,,, People should be questioned why didnt they वोट,,,,,,,We can change our political system by voting for the right person and persuading/educating people around you to vote for the right परसन,,, Let us all contribute by voting for the right person and campaign for वोटिंग..

Thursday, April 9, 2009

चुनावी समर में 23 योद्धा, दो ने छोड़ा मैदान

चुनावी समर में 23 योद्धा, दो ने छोड़ा मैदान
Apr 09, 01:38 am
प्रतापगढ़। बेल्हा के चुनावी समर के योद्धाओं की तस्वीर साफ हो गयी है। नामांकन प्रपत्रों की जांच में 25 प्रत्याशियों के पर्चे वैध पाये गये थे। इनमें से दो प्रत्याशियों ने नामांकन वापसी प्रक्रिया में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। 23 प्रत्याशियों को जिला निर्वाचन अधिकारी ने चुनाव चिन्ह स्वीकृत किया है।
नामांकन स्थल अफीम कोठी के पास सुबह से ही प्रत्याशी व समर्थकों की चहल कदमी रही। जिला निर्वाचन अधिकारी डा. पिंकी जोवल की मौजूदगी में नामांकन वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई। दोपहर तक उम्मीदवारी वापस लेने वालों में दो प्रत्याशी रहे। इनमें बाहुबली प्रत्याशी अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन तथा जय सिंह यादव शामिल हैं।
नाम वापसी के बाद अब चुनाव मैदान में 23 प्रत्याशी हैं। इनमें से चार राष्ट्रीय दलों के साथ ही चार पंजीकृत राजनीतिक दलों के तथा 15 प्रत्याशी निर्दलीय हैं।
दोपहर बाद सभी प्रत्याशियों को सिम्बल एलाट किये जाने का काम शुरू हुआ। चुनाव चिन्ह लेने आये लोगों में अधिकतर प्रत्याशियों के प्रतिनिधि रहे। जिला निर्वाचन अधिकारी ने नामांकन प्रपत्र और प्रत्याशियों के एजेण्ट प्रपत्रों की गहन जांच के बाद ही सिम्बल एलाट किया। राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों में सिर्फ भाजपा प्रत्याशी ही सिम्बल लेने गये थे। सपा व बसपा प्रत्याशियों के प्रतिनिधि ही सिम्बल लेने आये। इसके इतर पंजीकृत राजनीतिक दल और निर्दल प्रत्याशी व्यक्तिगत रूप से सिम्बल लेने पहुंचे थे। दोपहर बाद तीन बजे के बाद सभी प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया।
मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राजनीतक दलों के प्रत्याशियों में अक्षय प्रताप सिंह को साइकिल, राजकुमारी रत्ना सिंह (कांग्रेस) को पंजा, लक्ष्मी नारायण पाण्डेय (भाजपा) को कमल, शिवाकांत ओझा (बसपा) को हाथी चुनाव चिह्न मिला। पंजीकृत राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अतीक (अपना दल) को कप-प्लेट, अरुण कुमार (सजपा) को बैटरी टार्च, अब्दुल रसीद अंसारी (मोमिन कांफ्रेंस) को सिलाई मशीन, राजेश (क्रांतिकारी जयहिंद सेना) को केला चुनाव चिह्न मिला। इसके अलावा निर्दल प्रत्याशियों शिवराम गुप्ता को रोडरोलर, छंगा लाल को रेल इंजन, विनोद को टोकरी, दिनेश पांडे को सीटी, रानीपाल को डोली, रमेश तिवारी को बल्ला, अतुल द्विवेदी को अंगूठी, ऊधवराम पाल को केतली, जितेन्द्र प्रताप सिंह को लेटर बाक्स, मुनेश्वर को गैस सिलिेण्डर, रवीन्द्र सिंह को कोट, राममूर्ति मिश्र को कांच का गिलास, रामसमुझ को पतंग, संतराम को आलमारी, बद्री प्रसाद को चारपाई चुनाव चिह्न मिला।

Saturday, April 4, 2009

हर्गिज नहीं चुनें एक भी दागदार

आपराधिक कर्म और चरित्र वाले प्रत्याशी, जिनका अच्छा-खासा इतिहास थानों में दर्ज हैं और जिनकी छवि भी दागदार है वे यदि एक बार फिर हमारे भाग्य विधाता और नीति निर्माता बन जाते हैं तो हमारे रोने-धोने और नेताओं को कोसते रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। जब यह तय है कि राजनीतिक दल दागियों को उम्मीदवार बनाने से बाज नहीं आने वाले तो फिर उन्हें सबक सिखाने में संकोच क्यों? तमाम रोष-आक्रोश और प्रतिरोध के बावजूद दागियों को चुनाव मैदान में उतारने का सिलसिला कायम होता दिख रहा है। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो कुछ कुख्यात छवि वालों की उम्मीदवारी सबसे पहले पक्की हुई है, जैसे बनारस में मुख्तार अंसारी बसपा के उम्मीदवार बन रहे हैं। क्या यह बनारस की जनता का अपमान नहीं? जागे बनारस और सतर्क हो जाए सारा देश, क्योंकि बनारस की तरह देश के अन्य अनेक चुनाव क्षेत्रों में भी एक से एक दागी चुनाव मैदान में उतरने को आतुर हैं। इससे भी भद्दी बात यह है कि राजनीतिक दल भी उन्हें जनप्रतिनिधि का तमगा पहनाने पर आमादा हैं। इसके लिए वे तरह-तरह के बहाने गढ़ रहे हैं, जैसे यह कि वे भटके हुए लोगों को सुधरने का मौका दे रहे हैं। सच तो यह है कि वे हमारी आंखों में धूल झोंककर राजनीति को मैला कर रहे हैं।
दागियों को चुनकर हम लोकतंत्र को दागदार बनाने का काम करेंगे और ऐसा काम करने के बाद संसद के सही तरह चलने और पक्ष-विपक्ष के जवाबदेह बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या यह किसी से छिपा है कि विधानमंडलों में दागी सिर्फ इसलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि हमारे-आपके वोट उनकी झोली में गिर रहे हैं। गलती कर रहे हैं हम और इनाम पा रहे हैं वे जिन्हें हम छंटे हुए अपराधी समझते हैं।

Tuesday, March 31, 2009

,,Do not spoil what you have by desiring what you have not; remember that what you now have was once among the things you only hoped for.”
when u have a dream u got to protect it
Life is nothing when v get everythin, but life is everythin whn v miss somethin
Success usually comes to those who are too busy to be looking for it

(( Kindness is the language which the deaf can hear and the blind can see." - Mark Twain-))

We all have ability. The difference is how we use it" - Stevie Wonder

MIND BLOWING QUOTE

"''IF YOU WANT SOME THING WHICH YOU NEVER HAD.,,,,,,,,, DO SOMETHING WHICH YOU HAVE NEVER DONE
In every person's life some special person will be there ..,,,,,.they act as a catalyst so who that special guy or गर्ल,,,,,,,....it may be kind of relation.,,,,,,,,..father or mother,, ,,,,friend, lover,wife etc... dont ever miss them because you don't realize their love in their presence....if you are suffering from any kind of depression.. they guide you in feasible way...i think that special person is the best motivator in the world... do share your feelings.... i start it i think my best friend is my Brother...we used chat in late hours....he always gives chance to take decision in my life...he used to tell me that " just do what you want to do" go and decide what your heart says...don't depend on any one... i think that word boost me up in my life... in many cases i made wrong decisions ..but after that also he used to tell putting his hands on shoulders that take it easy da ... we can see it next time...not only me, after hearing these words every person would work hard and attain the ऑब्जेक्ट,,,,,,,,,,,,

Success

it is true success wont be coming in a single day.,, it need to build with your working passion along with own interest ...,,,. you might be good in some other activities rather than studies.,,,,,,, try to concentrate in that field and make use of the best opportunities..,,,,,.how to use??????/ you must create that situation.????????..you must analyze in swot method. it is nothing but s- strengthen your capacity w-analyze your weakness and try to overcome it.o- make use of the best opportunity........T- analyze the threats ..... this is the basic philosophy in management./........ it might found silly but from my experience i am telling if your afraid to particular situation or something ,,,,,,,then you must face it ,,,,,,....eg seminars,,first time every one will be shaky in their presentation,they stuck in their thought process..so many people would not participate in those kind of activities... so in these situation only motivation is required for that person.. it must given by concerned teachers or friends... if that person takes a session he may shaky but encourage him ... then he ask to himself "do we really done the presentation well "next time there will be increasing in self confidence...towards mentally he starts improving his talent and it tells in his exposure towards that field .....

Rules

if you don't like to follow others rule,,,,,,,, create your own rule and make others follow it....

Life

I was a person who didn't look around so that I was totally unaware of the reality.But my rxperiences taught me to look around and live a real life.LIFE IS REALLY BEAUTIFUL. ,,,,,,,,

Monday, March 30, 2009

sense

Never let your sense of morals get in the way of doing what's रिघ्त,,,,,

Saturday, March 28, 2009

Allow Your Own Inner Light to Guide You

''''There comes a time when you must stand alone........You must feel confident enough within yourself to follow your own dreams........You must be willing to make sacrifices........You must be capable of changing and rearranging your priorities ....so that your final goal can be achieved........Sometimes, familiarity and comfort need to be challenged.

There are times when you must take a few extra chances and create your own realities.Be strong enough to at least try to make your life better.Be confident enough that you won't settle for a compromise just to get by.Appreciate yourself by allowing yourself the opportunities to grow, develop, and find your true sense of purpose in this life.Don't stand in someone else's shadow when it's your sunlight that should lead the way.

a

If money help a man to do good to others, it is of some value; but if not, it is simply a mass of evil, and the sooner it is got rid of, the better. --- Swami Vivekananda ji

today's punch

"every new ideas is a joke, until one achieve it"