Thursday, April 30, 2009

जिंदगी प्यार मांगती है

सुबह से शाम तक थकी हुई जिंदगी !

ऑफिस की फाइलों से बंधी हुई जिंदगी !!

मशीनों के पुर्जों SANG ढली हुई जिंदगी ॥

चाय के प्यालों से पली हुई जिंदगी .....

जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!!!!

चांदीके टुकडों में बिकी हुई जिंदगी

धुले हुए कपडों से ढकी हुई जिंदगी

कल के ख्यालों में डूबी हुई जिंदगी

अपने ही दुखादों से उबी हुई जिंदगी

जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!

2 comments:

उम्मीद said...

आपने अपनी कविता में शब्दों को सुन्दर ढंग से पिरोया है।
इससे भावों में जीवन्तता आ गयी है।
अभिव्यक्ति सुन्दर और ग्राह्य है।

Akhilesh Shukla said...

thanks for comments