मै आज ही गाँव से वापस आया हूँ,जो कुछ भी हम ने गाँव में देखा या अनुभव किया मै यहाँ पर लिख रहा हूँ......... घर-घर बिजली पहुंचाने का सरकारी दावा बेल्हा (प्रतापगढ़) में बहुत दमदार नहीं दिखता। यहां आज भी ऐसे बहुत से गांव है जहां ढिबरी की रोशनी में लोग जीने को मजबूर है।......यहां के बच्चों की आंखों पर ढिबरी का ऐसा कार्बन जमा कि उनकी आंखों में चश्मा कम ही उम्र में लग गया।,,,,, उन्हे अंधेरे से दूर करने की सारी योजनाएं विफल हो चुकी है। अब उन्हे कौन रोशनी उपलब्ध करायेगा, उन्हे किसी पर भरोसा नहीं है। जनपद में कई ऐसे गांव है जो आजादी के बाद भी रोशन नहीं हो पा रहे है। इन गांवों को रोशनी करने के लिए ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया लेकिन किसी ने इनकी जरूरतों को नहीं समझा। शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है। दिखाई देता है तो बस ढिबरी की लपक से 6 दशक बीत गये लेकिन किसी ने इन ग्राम सभाओं की ओर ध्यान नहीं दिया। वैसे तो सरकार ने गांवों का विद्युतीकरण करने के लिए जनपद को करोड़ों रुपये दिया लेकिन जनपद में कुछ ऐसे गांव है जिन गांवों में अभी तक विद्युत की रोशनी नहीं पहुंच पायी है। आज भी किसी त्यौहार व उत्सव में भी प्राइवेट बिजली व्यवस्था या तो केरोसिन से चलने वाले गैस का ही सहारा लेना पड़ता है। इन ग्राम वासियों से विद्युत लगने की बात करने पर कहते है कि हम लोग कई बार जनप्रतिनिधियों के पास गये है। आश्वासन के अलावा अभी तक ग्राम सभा में विद्युतीकरण के लिए प्रतिनिधि ने गांव के लिए पैसा मुहैया नहीं कराया। आज भी शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है बच्चे दीपक की रोशनी में पढ़ने के लिए मजबूर है। इससे आये दिन उनको आंख व अन्य बीमारियों से पीड़ित रहना पड़ता है। ऐसा भी नहीं है कुछ गांव के लिए जनप्रतिनिधियों के चक्कर बराबर लगा है। यह लोग इन जनप्रतिनिधियों का वादा माने या विभाग की लापरवाही लेकिन विद्युत विभाग के अधिकारी यह जरूर मान रहे है कि अभी भी जनपद में सौ से अधिक गांव विद्युत विभाग की रोशनी से कोसो दूर है।
Monday, April 27, 2009
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