इस बार मैंने भी अपने मताधिकार का प्रोयोग किया,वैसे मेरी उम्र २४ साल है लेकिन जब भी चुनाव होता था तो हम हमेशा बहार ही रहते थे पहले पढाई फिर रोजगार के सिलसिले में,गाँव के लोगो में अभी भी अशिक्षा है भले ही वो लोग हाई स्कूल , इंटर या बीऐ कर ले।मैंने जो देखा वो लिख रहा हूँ इस बार चुनाव में शरीर की हड्िडयों का बोझा उठाने वाले बूढ़ों में मताधिकार के प्रति जो जज्बा दिखाई पड़ा उसे भुलाया नहीं जा सकता, वहीं देश के नेतृत्व की बागडोर संभालने का दंभ भरने वाले युवाओं में वह उत्साह नहीं दिखाई पड़ा। हमारे गाँव बेलहा के रहने वाले एक सौ वर्षय रामस्वरूप जब लाठी के सहारे बूथ पर वोट डालने पहुंचे तो वहां खड़े बाकी मतदाताओं की आंखें आश्चर्य से फट गयीं। इस उम्र में भी राम स्वरूप ने जागरूकता का जो परिचय दिया, उससे युवाओं को सबक लेना चाहिए। ऐसा वहां के लोगों का कहना था। यही नहीं पीठासीन अधिकारी व मतदान कर्मी भी रामस्वरूप के इस हौसले को सलाम किये बिन रह नहीं पाये। इस बार के लोकसभा के चुनाव में बूथों पर युवाओं का जोश नहीं दिखाई दिया। मतदान केन्द्रों पर चालीस के ऊपर के ही मतदाता अधिक दिखायी पड़े। महिलाओं में इस बार जोश अधिक दिखा।
राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बदली हुई परिस्थिति में भी एक से बढ़कर एक युवाओं ने राजनीति के पटल पर अपनी पहचान बनायी है। राजनीति के इतिहास के पन्ने पलटे जायं तो ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। राजनीति के समीकरण का गुणा भाग इन्हीं के कंधों पर टिका है। दिशा व दशा बदलने वाले यही युवा इस बार के लोकसभा के चुनाव में घरों से बाहर नही निकले। बूथों पर केवल उम्र दराज मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करते देखा गया। युवाओं के वोट न करने से वोट का प्रतिशत भी गिरा है। ऐसा नहीं है कि इनमें जागरूकता का अभाव था। बताया जाता है कि इन्होंने चुनाव में रुचि ही नही ली। जबकि पिछले चुनावों के आंकड़े यह बताते हैं कि युवाओं ने जमकर वोट किया था। कुछ युवा अगर दिखे भी तो वे एजेंट के रूप में ही काम करते नजर आये। इनमें भी कोई खासा उत्साह नही दिखाई दिया। वहीं उत्साह से लबरेज रामस्वरूप ने जिस तरह से इस उम्र में वोट डाला, उससे आज के युवाओं को सबक लेना चाहिए।
Monday, April 27, 2009
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