hamare सारे जीवन में भोंपू-सायरन का बड़ा महत्व है,, हमें अपने बचपन की याद है,, jab हम गर्मी की छुट्टी बिताने मामा के घर kanpur शहर जाते थे। वहां कपड़ों की मिलें थीं। सबेरे- सबेरे फैक्टरी का भोंपू बजता,,,,, अपनी नींद उसी के साथ खुलती। हम मामा जी से उनके शहर की तारीफ करते। कितना प्यारा नगर है। हमारी मां को गलतफहमी थी कि, '''''''जो सोवत है, वो खोवत है।'' '''''''कुछ भी खोने से बचाने के लिए वह हमें भोर की बेला में कान पकड़कर उठा देती।'''''' मामा के यहां सोतों को जगाने के लिये भोंपू बजता है। कम से कम कान तो खिंचने से बचते है। विकल्प भी है। जो सोना चाहे, सोये'''''' जिसकी जागने की साध हो, जागे।
यों उनकी इस नियमित रियाज से हम सूरज के साथ और कभी-कभी पहले भी, जागने लगे थे ......यह उनकी रोज की कान खिंचाई की सफलता का सुखद परिणाम है। बेटा आज अफसर तो बना।
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