Thursday, October 28, 2010

गए थे परदेश में रोटी कमाने

गए थे परदेस में रोजी रोटी कमानेचेहरे वहां हजारों थे पर सभी अनजाने
दिन बीतते रहे महीने बनकरअपने शहर से ही हुए बेगाने
गोल रोटी ने कुछ ऐसा चक्कर चलायाकभी रहे घर तो कभी पहुंचे थाने
बुरा करने से पहले हाथ थे काँपतेपेट की अगन को भला दिल क्या जाने
मासूम आँखें तकती रही रास्ता खिड़की सेक्यों बिछुड़ा बाप वो नादाँ क्या जाने
दूसरों के दुःख में दुखी होते कुछ लोगहर किसी को गम सुनाने वाला क्या जाने

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