मौन रहने से
जहां व्यक्ति की ‘ऊर्जा’ संरक्षित रहती है, वही उसे मानसिक शान्ति का भी
अनुभव होता है। मौन रहकर ही हम किसी ‘विषय’ का गहरार्इ से ‘चिंतन’ कर सकते
हैं और विषय की ‘तह’ तक पहुंच सकते हैं। जितने भी उच्चस्तर के
संत-महात्मा-वैज्ञानिक तथा लेखक-कवि-साहित्यकार हुए हैं, उनके उच्च स्तर
के ‘कृत्य’ व ‘कृति’ के पीछे मौन की ही साधना रही है। इसलिए ‘मौन रहो और अपनी सुरक्षा करो, मौन तुम्हारे साथ कभी विश्वासघात नहीं करेगा।‘1
Tuesday, March 4, 2014
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