मेरे लिये महिला दिवस मतलब कुछ लिखने जाती हूँ मासूम बच्चियोँ का चेहरा आँख के आगे आ जाता है । कुछ अपवाद छोड़ के बहुत जगह बेटा बेटी से खिलौने छीन सकता है , दो बेटीयो के बाद हुआ बेटा बेटियो से छोटा बेटा माँ बेटी को कहेगी बड़े प्यार से बेटा दे दे भइया को छोटा है रोयेगा और बेटी बिना किसी शिकायत के दे देगी , बेटी कितनी बड़ी हो गयी बचपन मे ही ।फिर स्कूल जाती बच्ची क्या सुरक्षित है बड़ी होती बेटी घर बर अच्छा मिला ब्याह दो । आज की बेटी कल बहू बन गयी बहू बन के भी कयी समझौते कभी खुद की खातिर कभी अपनो की खातिर अगर कही कुछ गलत हो गया तो जीते जी मरे वो ,वो कमीने डर तो उन राक्षसो( हैवानो )को होना चाहिये जो जीते जी छीन लेते है अधिकार जीने का मुँह छिपाना चाहिये कायरो को ना कि निअपराध नारी को कैसा महिला दिवस जिस दिन ये बलात्कार शब्द हमे लिखने मे शर्म आती है ये शब्द खत्म होगा उस दिन सच्चे अर्थो मे महिला दिवस होगा
Friday, March 7, 2014
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