Tuesday, December 8, 2009
अब बाबुल के घर से विदा नहीं होतीं बेटियां
बिटिया दुल्हन बन रही हैं, ,उनका घर-आंगन छूट रहा है।, बचपन की सहेली भी छूट रही है, लेकिन बाबुल के घर से विदा होने की परंपरा अब स्मृति शेष बनकर रह गई है।,,,, अब लोग घर से शादी करना अपने शान के खिलाफ समझ रहे हैं। मजबूरी से शुरू हुई मैरिज हाल में शादी अब स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। लोग मैरिज हाल से शादी के कई फायदे गिनाते हैं।
हालात यह है कि अब लोग मैरिज हाल की बुकिंग देखकर शादियों की तिथि तय करने लगे हैं। लड़का-लड़की दोनों पक्ष के लोग मैरिज हाल में आकर एक ही दिन तिलक, मटकोर, शादी एवं उसके बाद बहूभोज तक कर रहे हैं। हाल का एक दिन का किराया छह से 40 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। मेरे एक दोस्त जो की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले नीतेश कुमार वर्मा की शादी इसी माह 14 दिसंबर को है। वे कहते हैं, अब कौन झंझट करे घर से शादी करके। ,,,,मैरिज हाल में एक ही जगह सबकुछ मिल जा रहा है।,, जाइए शादी कर दुल्हन को लेते आइए।,, सबकुछ पलक झपकते।
फ्लैट संस्कृति भी एक कारण है। इसका एक फायदा यह है कि इस महंगाई में लड़का-लड़की दोनों पक्ष खर्च को शेयर कर लेते हैं।,, समय की भी बचत होती है।
Saturday, September 26, 2009
न आना इस देश लाडो
ये समाज का कौन सा चेहरा है जो एक तरफ साल में दो बार बेटियों की पूजा करता है, दूसरी तरफ अपने घर में बेटियों की किलकारी से उतना ही परहेज रखता है। नवरात्र के पवित्र दिनों में लोग दुर्गा की पूजा तो करते रहे, लेकिन दुर्गा रूप की आवाज इन दिनों में कमजोर से कमजोर होती गई। इस दौरान लड़कियों की मुकाबले लड़कों की पैदाईश ज्यादा हुई।
Saturday, September 19, 2009
अनूठी है शादी की साटा-पल्टा परंपरा
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विकासनगर [दीपक फस्र्वाण]। सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक ओर जहा नेट पर आसानी से आनलाइन मैरिज हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी बिरादरी भी है, जिसके रस्मोरिवाज खासतौर पर लड़के की शादी को जटिल बना देते हैं। उनमें दुल्हन लेने के बदले दुल्हन देने की प्रथा आज भी जीवित है। यदि देने के लिए दुल्हन न हो, तो दामाद को विवाह से पूर्व ही घर जमाई बना दिया जाता है, जिसे पाच से दस वर्ष तक लड़की के घर रहकर उनकी मवेशियों को चुगाने के साथ-साथ उनके लिए चारा-पत्ती का इंतजाम भी करना होता है।
एक और रोचक तथ्य यह कि इस बिरादरी में विवाह समारोह के दौरान किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग वर्जित है और महिला गीत के बजाए पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है।
बात वन गुर्जरों की हो रही है। इस बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज काफी रोचक हैं। वन गुर्जरों में छोटी सी उम्र [पांच से 10 वर्ष] में ही लड़के की शादी तय हो जाती है, लेकिन उसमें पारंपरिक नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। लड़के की शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान किया जाता है। अर्थात, वर पक्ष दुल्हन लेने के बदले कन्या पक्ष को भी दुल्हन देते हैं, जिसे साटा-पल्टा कहा जाता है।
यदि किसी के पास देने के दुल्हन न हो तो फिर दामाद को लड़की के घर शादी से पहले ही घर जमाई बनाकर रखा जाता है। दोनों पक्षों के बीच तय हुए निर्धारित समय [पांच से 15 वर्ष] तक लड़के को लड़की के घर रहकर उनके मवेशियों की देखरेख और उनके लिए चारा पत्ती के इंतजाम की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिम्मेदारियों पर खरा उतरने पर ही बाद में उसे दुल्हन सौंपी जाती है।
वन गुर्जर बिरादरी के शादी समारोह के रीतिरिवाज भी अनोखे हैं। शादी की तिथि निर्धारित होते ही बिरादरी का मुखिया पंचायत बुलाता है और सभी को शादी का न्योता देता है। गुर्जर अपनी भाषा में न्योता दिए जाने को गंढ कहते हैं। शादी के दिन बारातियों को दूध और मक्खन साथ में लाना अनिवार्य है।
न्योते के रूप में रुपये को अहमियत नहीं दी जाती है। समारोह में चावल, घी और बूरा की दावत चलती है। एक और खास बात यह है कि यहा शादी से एक दिन पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म मनाई जाती है। रस्म में महिला नहीं, बल्कि पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। पुरुष पूरी रात कान में अंगुली डालकर सूफियाना अंदाज में गाते हैं, जिसे बैंत कहा जाता है। पूरे समारोह में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।
Monday, August 31, 2009
सच का SAMNA
A DAYS PEOPLE HAVE BECAME SO BOLD OR OPEN, THAT IS WHY THEY ARE NOT HESITATING TO TELL THE TROUTH IN FRONT OF THE WORLD।MY REQUEST OR WHISH IS THAT YOU MUST BRING SOME POLITICIAN OR BUROCRATES SPECIALLY THE CORRUPT ONE.
Thursday, July 2, 2009
उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।
अभी चंद रोज़ पहले अपने एक मित्र ललित के साथ साईं संध्या में जाने का अवसर प्राप्त हुआ.....मैं ॐ नगर में रहता हूँ और ये आयोजन हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था.....साईं बाबा में लोगों की कितनी आस्था है ये बताने के लिए वहा जमा भीड़ ही काफी थी। बड़ा ही भव्य आयोजन था। साईं बाबा की सोने की प्रतिमा और भक्तों की आस्था .........सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।"मैं यूं तो सहज ही महिलाओं के प्रति आकर्षित हो जाता हूँ मगर उस दिन मेरे आकर्षण की एक दूसरी वजह थी......महिलाओं और बालिकाओं के चेहरे पर मेक अप की बहुत मोटी परत चढी हुई थी....क्षण भर के लिए तो ये भ्रम हो गया की कहीं हम किसी उच्चस्तरीय विवाह में तो नहीं आ गए......वहां जमा भक्तों की भीड़ को देखकर मुझे इस सत्य का बोध हुआ की किसी भी धार्मिक समारोह में भली प्रकार सज धज कर जाना चाहिए। महिलाओं और बालिकाओं के चेहरों की चमक......उनकी भौंहों का संकरापन......और उनके महंगे आभूषण ये बयां करने के लिये काफी थे की वो पिछले तीन चार दिनों से इस आयोजन की तैयारियाँ कर रही होंगी।......"सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया।"प्रसाद के रूप मे रात्रिभोज की व्यवस्था भी थी.....हम भी प्रसाद लेने के उदेश्य से संभ्रांत वर्ग की पंक्ति मे खड़े हो गये.....उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस आयोजन मे सबसे ग़रीब हम ही हैं॥ .फिर भी भगवान के दरबार मे ये भेद कहाँ होता है ... ये सोचकर मैं कतार ने निश्चिंत खड़ा रह... ॥ ....खैर प्रसाद का वितरण सुचारू रूप से चल रहा था...इतने मे एक व्यक्ति जो शायद फुटपाथ पर रहता था या संभवता रेहड़ लगता होगा वो पंडाल मे आया...उसने सोचा की बाबा का भंडारा है चलो यहीं भोजन हो जाएगा...लेकिन उसके बाद की घटना ने मुझे हतप्रभ कर दिया....कुछ आयोजनकर्ताओ और कुछ भक्तों ने उस बेचारे को दुतकार कर बाहर भगा दिया ..........."सचमुच मैं उनकी भक्ति देखकर दंग रह गया."।............... सर्वप्रथम मैं ये बता देना चाहूँगा कि मैं कोई लेखक नहीं हूँ..... बस अपने मन के कुछ विचार यहाँ पर प्रकट कर रहा हूँ ......अतः लेखन कि त्रुटियों को क्षमा करें.....
Monday, June 22, 2009
साहब
साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- ''''''''कल जो नया बाबू आया है,,,,,, उसे मेरे पास भेजो।'' ''''जी सर।'' ''थोड़ी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। ''''''''क्या नाम है?'' ''''''''जी ''अजय '';;;;;; ''घर कहां है?''
''मोतिहारी बिहार ,,,'' '''''''क्यों आज मंगलवार है?'' '''''''''नहीं सर,'''''' आज बुधवार है।'' साहब अभी तक फाइल में ही नजरे गड़ाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। '''''''''तुम मुझसे ज्यादा जानते हो?'''''''' ''नहीं सर!!!!!!!!''''''' मैंने आज सुबह अखबार में पढ़ा था।'' '''''''अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते है।'' ''लेकिन सर, मेरी कलाई घड़ी में भी आज बुधवार है।'' ''गेट आउट फ्राम हियर।''
संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बड़े बाबू मनोहर को बुलवाया। बड़े बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- ''क्यों बड़े बाबू, आज मंगलवार है?'' ''''''''जी सर।'''''''' ''गुड,''''' नाउ यू कैन गो।''
सायरन
hamare सारे जीवन में भोंपू-सायरन का बड़ा महत्व है,, हमें अपने बचपन की याद है,, jab हम गर्मी की छुट्टी बिताने मामा के घर kanpur शहर जाते थे। वहां कपड़ों की मिलें थीं। सबेरे- सबेरे फैक्टरी का भोंपू बजता,,,,, अपनी नींद उसी के साथ खुलती। हम मामा जी से उनके शहर की तारीफ करते। कितना प्यारा नगर है। हमारी मां को गलतफहमी थी कि, '''''''जो सोवत है, वो खोवत है।'' '''''''कुछ भी खोने से बचाने के लिए वह हमें भोर की बेला में कान पकड़कर उठा देती।'''''' मामा के यहां सोतों को जगाने के लिये भोंपू बजता है। कम से कम कान तो खिंचने से बचते है। विकल्प भी है। जो सोना चाहे, सोये'''''' जिसकी जागने की साध हो, जागे।
यों उनकी इस नियमित रियाज से हम सूरज के साथ और कभी-कभी पहले भी, जागने लगे थे ......यह उनकी रोज की कान खिंचाई की सफलता का सुखद परिणाम है। बेटा आज अफसर तो बना।
Saturday, June 13, 2009
MOBILE
सबसे बचते-बचाते
या भीतर के कमरे की ओर दौड़ना
सट से दरवाजा भिड़ा देना
या फिर लोगों के समूह में से
कहीं ओट में चले जाना
बता देता है सबको
जिसे चाहती हो तुम छुपाना
तुम्हे लगता है कोई
नहीं सुन पाया संवाद तुम्हारा
पर
तुम्हारे गालों का गुलाबीपन
आंखों की चमकीली नमी
होठों का गीलापन
कह देता है सब कुछ
जिसे चाहती हो तुम छुपाना।
(दो)
पहाड़ी की ओट से
निकल आया है आसमान में
पून्यो का चांद
आ रही है कहीं से
चूल्हे में सिंकते फुलके की
खुशबू
बढ़ा रही है जो मेरी नराई को
और भी ज्यादा।
ऐसे में मोबाइल
प्रतीत होता है मुझे
दुनिया की सबसे आत्मीय वस्तु
और उसकी घंटी
दुनिया का सबसे कर्णप्रिय संगीत।
* अपने अंतर्मन की पुकार सुनें, जिसे सुनने के लिए आपको एकांत में खुद से सवाल करना होगा। ऐसा अभ्यास आपको कई बार करना पड़ सकता है। तभी आपको अपनी उन सच्ची इच्छाओं का पता लग सकेगा, जिन्हे आप जिंदगी में पूरा करना चाहते है।
* अपनी प्रसन्नता का अहसास करने के लिए भी वक्त निकालें। एक सार्थक व अर्थपूर्ण जिंदगी जीने की एक महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि आप स्वयं को कितना संतुष्ट महसूस कर रहे है।
* संभावनाओं को तलाशें। जीवन में प्रयोगवादी भी बनें। उन सभी संभावनाओं का खुलासा करने की कोशिश करे, जिनसे आपकी जिंदगी आनंद से परिपूर्ण हो सकती है।
* दुनिया में हो रहे बदलावों को समझें। खुद पर और अपने सपनों को साकार करने के संदर्भ में विश्वास रखें।
* अपने काम में पूरा मन लगाएं। जिस करियर या व्यवसाय को आप पसंद करते हों, उसका ही चयन करे। करियर के चयन में साहसिक पहल करे।
* जीवन में मुश्किल वक्त भी आता है। उतार-चढ़ाव जीवन का स्वाभाविक नियम है। मुश्किलों का सामना करे, पर मन में यह विश्वास रखें कि आप इन कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर लेंगी।
* परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस बात को हमेशा ध्यान रखें। इससे कभी भी जिंदगी में आपको निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
* सफलता की राह पर बहुत तेजी से कदम न दौड़ाएं, नहीं तो आप मंजिल तक पहुंचने से पहले थक जायेंगे ,,,,,,,, सामान्य सहज कदनों से प्रगति पथ पर आगे बढ़े। ऐसा करने से भी आप सहजता से कामयाबी की मंजिल पा लेंगे ...याद रखें हजारों मील का सफर पहले बढ़े हुए कदम से ही शुरू होता है।
Monday, June 8, 2009
अब नहीं होतीं दुल्हनें डोली में विदा
उधर, डोली प्रथा के मिटते वजूद ने कहारों की जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया है। हमारे गांव के पास कहारों की बस्ती होती थी। कहारों की आजीविका का एकमात्र साधन डोली ही थी। जब प्रथा गुम होने लगी और डोली पुरानी बात तो कहारों ने आजीविका की राह बदल डाली।
जहां अब डोलियां बननी बंद हो चुकी है और कहार बड़ी तादाद में रोजगार के लिए या तो दूसरे धंधे में लग चुके हैं या बड़े शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। हां, अब डोलियां भले न दिखें, पर डोली सजा के रखना, आएंगे तेरे सजना.. जैसे गीत खूब बज रहे हैं।.........
Thursday, April 30, 2009
जिंदगी प्यार मांगती है
सुबह से शाम तक थकी हुई जिंदगी !
ऑफिस की फाइलों से बंधी हुई जिंदगी !!
मशीनों के पुर्जों SANG ढली हुई जिंदगी ॥
चाय के प्यालों से पली हुई जिंदगी .....
जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!!!!
चांदीके टुकडों में बिकी हुई जिंदगी
धुले हुए कपडों से ढकी हुई जिंदगी
कल के ख्यालों में डूबी हुई जिंदगी
अपने ही दुखादों से उबी हुई जिंदगी
जब घर आती है तो प्यार मांगती है !!!!
Wednesday, April 29, 2009
बुढापे की लाठी
बुढापा एक विकार!
हीनता का शिकार
बेटा बाप के बुढापे की लाठी !
पर बदल गई परिपाटी ,,,,
बाप की पेंशन ,बेरोजगार बेटे की रोटी,
क्योंकि योग्यता के अनैतिक मापदंड में ,,बेटे की पहुँच है बहुत छोटी !!!!
Tuesday, April 28, 2009
प्राथमिक शिक्षा
जो राजनेता शायद ही कभी एयर कंडीशन कमरों से बाहर निकलते हों वे भी चुनाव के मौके पर गांवों में जाकर गरीबों के बच्चों को गोद में लेकर पुचकारते नजर आते है या फिर गरीब बूढ़ी औरत के सामने हाथ जोड़े दिखाई देते हैं। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि जैसे गरीबों की सबसे अधिक चिंता इन्हीं की पार्टी को है। गरीब और गरीबी, दोनों को ही अपने देश में इन बड़े-बड़े राजनेताओं ने मजाक की वस्तु बना दिया है। तरह-तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। रोज नए-नए वायदे किए जा रहे है। समाज को हाईटेक बनाने की बात तो खूब हो रही है, लेकिन क्या किसी भी पार्टी ने अपने चुनावी मुद्दे में गरीब बच्चों की शिक्षा को भी मुद्दा बनाया है? हम खुद को तथाकथित पढ़े-लिखे समाज का अंग मानते हैं और यही पढ़े-लिखे लोग बिना सोचे-समझे ही एक बाहुबली और भ्रष्ट नेता को वोट देते हैं। जो कम पढ़ा-लिखा है उसे क्या पता लोकतंत्र क्या है? उसे तो जो भी बहला-फुसला ले ले उसे अपना वोट दे देगा। पढ़े-लिखे लोग बड़ी-बड़ी बातें करेंगे, समाज को बदलने की बात करेंगे, लेकिन चुनाव के दिन घर से बाहर ही नहींनिकलेंगे। ऐसे में देश भर में फैले अशिक्षा के माहौल के लिए पढ़े-लिखे लोग ही कहींज्यादा जिम्मेदार हैं।
जब भी शिक्षा की बात की जाती है तो लोग देश में रोज खुल रही नई-नई यूनिवर्सिटी, आईआईटी,मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग संस्थान का उदाहरण देते हैं। लेकिन प्राथमिक शिक्षा के नाम पर क्या हो रहा है? सरकारी अफसर, शिक्षा जगत से जुड़े सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तार बड़ी आसानी से देते है कि 'मिड डे मील' जैसी योजनाएं चलाकर गांव-गांव में स्कूल खोल तो दिए गए हैं, अब लोग बच्चों को नियमित स्कूल भेजते ही नहीं तो सरकार क्या करे? क्या गांव में स्कूल के नाम पर कुछ टूटे-फूटे कमरे और उसमें एक शिक्षक रख देने भर से स्कूल बन जाता है? आज भी हमारे देश में बच्चों की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा विद्यालय नहीं जा पाता। जो 40 प्रतिशत बच्चे विद्यालय जाते भी हैं वे कुछ भी सीख नहीं पाते। ऐसे में अभिभावक निराश होकर अपने बच्चों को विद्यालय भेजना बंद कर देते हैं। यह अच्छी बात है कि देश में उच्च शिक्षण संस्थान खुलें, लेकिन जब तक हमारे देश में इन गरीब बच्चों की प्राइमरी शिक्षा के लिए पर्याप्त स्कूल नहीं खुलते तब तक एक भी नई यूनिवर्सिटी को खोला जाना बेईमानी है। जितनी लागत में एक नई यूनिवर्सिटी खुलती है और सालना उसके रखरखाव में खर्च होता है उतने खर्च में तो हजारों प्राइमरी स्कूल खोले जा सकते हैं, जहां गरीबों के बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था की जा सकती है। उच्च शिक्षा के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाना और प्राथमिक शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाओं को भी मुहैया न कराना कहां का न्याय है।
उच्च शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। आज हर पूंजीपति और उद्योगपति प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज, यूनिवर्सिटी आदि खोलकर खूब कमाई कर रहा है। पहले पैसे वाले उद्योगपति समाज सेवा के नाम पर धर्मार्थ विद्यालय व चिकित्सालय खोलते थे, लेकिन आज के व्यवसायीकरण के माहौल में यह परंपरा बिल्कुल बंद हो गई है। सरकार प्रौढ़ शिक्षा की बात करती है। इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन क्या यह सत्य नहीं कि अगर आजादी के बाद सरकार ने ईमानदारीपूर्वक गरीब बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा का अभियान चलाया होता तो आज किसी प्रौढ़ को शिक्षित करने की जरूरत नहीं पड़ती। शिक्षा से समाज में फैली अधिकांश समस्याएं अपने आप ही हल हो जाती हैं। जिन अनेक योजनाओं पर सरकार वर्र्षो से पैसा लुटा रही है उनका समाधान साक्षरता से हो सकता था। जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, गरीबी, बाल मजदूरी जैसी समस्याएं शिक्षा के प्रसार से अपने आप कम हो जाएंगी। आखिर निर्धन वर्ग के बच्चे को इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिए कि वह अभाव में भी लिख-पढ़ सके। तभी वह लोकतंत्र, चुनाव का मतलब समझ सकेगा। सिर्फ यह कह देने से काम नहींचलेगा कि हमारे देश में लोकतंत्र है, संविधान लागू है अथवा जनता द्वारा निर्वाचित सरकार जनता के लिए है। गरीबों की शिक्षा का उपहास उड़ाना बंद कर कुछ मजबूत कदम उठाए जाएं, तभी स्थिति में कुछ सुधार होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तर्ज पर बेसिक शिक्षा के लिए भी एक अनुदान आयोग बनना चाहिए। सरकार को ऐसे प्रयास भी करने चाहिए जिससे उद्योगपति तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के संस्थान अथवा अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल खोलने के साथ-साथ गांवों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए भी स्कूल खोलने के लिए आगे आएं। इसके लिए सरकार को नीतिगत स्तर पर ठोस पहल करनी होगी।
Monday, April 27, 2009
युवाओं ने किया निराश
राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बदली हुई परिस्थिति में भी एक से बढ़कर एक युवाओं ने राजनीति के पटल पर अपनी पहचान बनायी है। राजनीति के इतिहास के पन्ने पलटे जायं तो ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। राजनीति के समीकरण का गुणा भाग इन्हीं के कंधों पर टिका है। दिशा व दशा बदलने वाले यही युवा इस बार के लोकसभा के चुनाव में घरों से बाहर नही निकले। बूथों पर केवल उम्र दराज मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करते देखा गया। युवाओं के वोट न करने से वोट का प्रतिशत भी गिरा है। ऐसा नहीं है कि इनमें जागरूकता का अभाव था। बताया जाता है कि इन्होंने चुनाव में रुचि ही नही ली। जबकि पिछले चुनावों के आंकड़े यह बताते हैं कि युवाओं ने जमकर वोट किया था। कुछ युवा अगर दिखे भी तो वे एजेंट के रूप में ही काम करते नजर आये। इनमें भी कोई खासा उत्साह नही दिखाई दिया। वहीं उत्साह से लबरेज रामस्वरूप ने जिस तरह से इस उम्र में वोट डाला, उससे आज के युवाओं को सबक लेना चाहिए।
गांवों में ढिबरी के सहारे अंधेरे से जंग
मै आज ही गाँव से वापस आया हूँ,जो कुछ भी हम ने गाँव में देखा या अनुभव किया मै यहाँ पर लिख रहा हूँ......... घर-घर बिजली पहुंचाने का सरकारी दावा बेल्हा (प्रतापगढ़) में बहुत दमदार नहीं दिखता। यहां आज भी ऐसे बहुत से गांव है जहां ढिबरी की रोशनी में लोग जीने को मजबूर है।......यहां के बच्चों की आंखों पर ढिबरी का ऐसा कार्बन जमा कि उनकी आंखों में चश्मा कम ही उम्र में लग गया।,,,,, उन्हे अंधेरे से दूर करने की सारी योजनाएं विफल हो चुकी है। अब उन्हे कौन रोशनी उपलब्ध करायेगा, उन्हे किसी पर भरोसा नहीं है। जनपद में कई ऐसे गांव है जो आजादी के बाद भी रोशन नहीं हो पा रहे है। इन गांवों को रोशनी करने के लिए ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया लेकिन किसी ने इनकी जरूरतों को नहीं समझा। शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है। दिखाई देता है तो बस ढिबरी की लपक से 6 दशक बीत गये लेकिन किसी ने इन ग्राम सभाओं की ओर ध्यान नहीं दिया। वैसे तो सरकार ने गांवों का विद्युतीकरण करने के लिए जनपद को करोड़ों रुपये दिया लेकिन जनपद में कुछ ऐसे गांव है जिन गांवों में अभी तक विद्युत की रोशनी नहीं पहुंच पायी है। आज भी किसी त्यौहार व उत्सव में भी प्राइवेट बिजली व्यवस्था या तो केरोसिन से चलने वाले गैस का ही सहारा लेना पड़ता है। इन ग्राम वासियों से विद्युत लगने की बात करने पर कहते है कि हम लोग कई बार जनप्रतिनिधियों के पास गये है। आश्वासन के अलावा अभी तक ग्राम सभा में विद्युतीकरण के लिए प्रतिनिधि ने गांव के लिए पैसा मुहैया नहीं कराया। आज भी शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है बच्चे दीपक की रोशनी में पढ़ने के लिए मजबूर है। इससे आये दिन उनको आंख व अन्य बीमारियों से पीड़ित रहना पड़ता है। ऐसा भी नहीं है कुछ गांव के लिए जनप्रतिनिधियों के चक्कर बराबर लगा है। यह लोग इन जनप्रतिनिधियों का वादा माने या विभाग की लापरवाही लेकिन विद्युत विभाग के अधिकारी यह जरूर मान रहे है कि अभी भी जनपद में सौ से अधिक गांव विद्युत विभाग की रोशनी से कोसो दूर है।
Friday, April 10, 2009
वोट carefully this year.
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
अधरों पर शब्दों को लिख के मन के भेद न खोलो ,,,,,मै आँखों से सुन सकता हूँ तुम आँखों से बोलो ,,सत्य बहुत तीखा होता है, सोच समझ कर बोलो !!!!
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फ़ुटपाथ पर पड़ा था>>>>>>>>>, वो भूख से मरा था>>>>>>>>>> कपड़ा उठा के देखा>>>>>>>>> तो पेट पे लिखा था… -""""सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा""… ----------------------------------------
voting
Thursday, April 9, 2009
चुनावी समर में 23 योद्धा, दो ने छोड़ा मैदान
Apr 09, 01:38 am
प्रतापगढ़। बेल्हा के चुनावी समर के योद्धाओं की तस्वीर साफ हो गयी है। नामांकन प्रपत्रों की जांच में 25 प्रत्याशियों के पर्चे वैध पाये गये थे। इनमें से दो प्रत्याशियों ने नामांकन वापसी प्रक्रिया में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। 23 प्रत्याशियों को जिला निर्वाचन अधिकारी ने चुनाव चिन्ह स्वीकृत किया है।
नामांकन स्थल अफीम कोठी के पास सुबह से ही प्रत्याशी व समर्थकों की चहल कदमी रही। जिला निर्वाचन अधिकारी डा. पिंकी जोवल की मौजूदगी में नामांकन वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई। दोपहर तक उम्मीदवारी वापस लेने वालों में दो प्रत्याशी रहे। इनमें बाहुबली प्रत्याशी अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन तथा जय सिंह यादव शामिल हैं।
नाम वापसी के बाद अब चुनाव मैदान में 23 प्रत्याशी हैं। इनमें से चार राष्ट्रीय दलों के साथ ही चार पंजीकृत राजनीतिक दलों के तथा 15 प्रत्याशी निर्दलीय हैं।
दोपहर बाद सभी प्रत्याशियों को सिम्बल एलाट किये जाने का काम शुरू हुआ। चुनाव चिन्ह लेने आये लोगों में अधिकतर प्रत्याशियों के प्रतिनिधि रहे। जिला निर्वाचन अधिकारी ने नामांकन प्रपत्र और प्रत्याशियों के एजेण्ट प्रपत्रों की गहन जांच के बाद ही सिम्बल एलाट किया। राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों में सिर्फ भाजपा प्रत्याशी ही सिम्बल लेने गये थे। सपा व बसपा प्रत्याशियों के प्रतिनिधि ही सिम्बल लेने आये। इसके इतर पंजीकृत राजनीतिक दल और निर्दल प्रत्याशी व्यक्तिगत रूप से सिम्बल लेने पहुंचे थे। दोपहर बाद तीन बजे के बाद सभी प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया।
मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राजनीतक दलों के प्रत्याशियों में अक्षय प्रताप सिंह को साइकिल, राजकुमारी रत्ना सिंह (कांग्रेस) को पंजा, लक्ष्मी नारायण पाण्डेय (भाजपा) को कमल, शिवाकांत ओझा (बसपा) को हाथी चुनाव चिह्न मिला। पंजीकृत राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अतीक (अपना दल) को कप-प्लेट, अरुण कुमार (सजपा) को बैटरी टार्च, अब्दुल रसीद अंसारी (मोमिन कांफ्रेंस) को सिलाई मशीन, राजेश (क्रांतिकारी जयहिंद सेना) को केला चुनाव चिह्न मिला। इसके अलावा निर्दल प्रत्याशियों शिवराम गुप्ता को रोडरोलर, छंगा लाल को रेल इंजन, विनोद को टोकरी, दिनेश पांडे को सीटी, रानीपाल को डोली, रमेश तिवारी को बल्ला, अतुल द्विवेदी को अंगूठी, ऊधवराम पाल को केतली, जितेन्द्र प्रताप सिंह को लेटर बाक्स, मुनेश्वर को गैस सिलिेण्डर, रवीन्द्र सिंह को कोट, राममूर्ति मिश्र को कांच का गिलास, रामसमुझ को पतंग, संतराम को आलमारी, बद्री प्रसाद को चारपाई चुनाव चिह्न मिला।
Saturday, April 4, 2009
हर्गिज नहीं चुनें एक भी दागदार
दागियों को चुनकर हम लोकतंत्र को दागदार बनाने का काम करेंगे और ऐसा काम करने के बाद संसद के सही तरह चलने और पक्ष-विपक्ष के जवाबदेह बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या यह किसी से छिपा है कि विधानमंडलों में दागी सिर्फ इसलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि हमारे-आपके वोट उनकी झोली में गिर रहे हैं। गलती कर रहे हैं हम और इनाम पा रहे हैं वे जिन्हें हम छंटे हुए अपराधी समझते हैं।
Tuesday, March 31, 2009
,,Do not spoil what you have by desiring what you have not; remember that what you now have was once among the things you only hoped for.”
when u have a dream u got to protect it
Life is nothing when v get everythin, but life is everythin whn v miss somethin
Success usually comes to those who are too busy to be looking for it
(( Kindness is the language which the deaf can hear and the blind can see." - Mark Twain-))
We all have ability. The difference is how we use it" - Stevie Wonder
MIND BLOWING QUOTE
Success
Rules
Life
Monday, March 30, 2009
Saturday, March 28, 2009
Allow Your Own Inner Light to Guide You
There are times when you must take a few extra chances and create your own realities.Be strong enough to at least try to make your life better.Be confident enough that you won't settle for a compromise just to get by.Appreciate yourself by allowing yourself the opportunities to grow, develop, and find your true sense of purpose in this life.Don't stand in someone else's shadow when it's your sunlight that should lead the way.