निशा बहुत खुश थी। वह दुबारा मां जो बनने जा रही थी। उसने सोच रखा था कि
अपने पांच साल के बेटे अनुज को यह खबर बहुत अलग तरीके से बताएगी ताकि अनुज
पूरी तरह से आने वाले बच्चे के लिए तैयार रहे और खुशी-खुशी उसे अपने
परिवार में शामिल कर ले। निशा ने अनुज से कहा कि एक नन्ही परी उसका ख्याल
रखने के लिए आने वाली है, जो बहुत प्यारी होगी। निशा ने बेटे को कहा कि उसे
भी अपनी बहन का बहुत ध्यान रखना होगा, अच्छी बातें सिखानी होंगी। अनुज खुश
हो गया। अनुज नए मेहमान के आने का इंतजार करने लगा। वह हर रोज मम्मी के
पास जाकर प्यार से एक गाना गाता- ‘तुम हो मेरी नन्हीं सी किरण’।
निशा आश्वस्त थी कि अनुज अपनी बहन का बहुत प्यार से ख्याल रखेगा, क्योंकि ज्यादातर बच्चे अपने भाई-बहनों के पैदा होने के बाद ईर्ष्या करने लगते हैं। कुछ महीनों बाद निशा के दूसरे बच्चे के पैदा होने का समय नजदीक आ रहा था कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों की वजह से निशा को समय पूर्व अस्पताल में जाना पड़ा। उसने एक बच्ची को जन्म दिया परंतु बच्ची की हालत नाजुक थी और वह काफी कमजोर थी। बच्ची को सभी आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाएं दी गईं, किंतु हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। निशा और उसके पति ने अभी तक अनुज को बच्ची से नहीं मिलवाया था क्योंकि अस्पताल में छोटे बच्चों के आने की इजाजत नहीं थी। डॉक्टर ने निशा को समझाया कि बच्ची का बचना मुश्किल है और हालत सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। अब तक तो निशा भी समझ चुकी थी परंतु अनुज को यह सब किस तरह बताए ये नहीं समझ पा रही थी। अनुज मां से बच्ची को देखने जाने की जिद करने लगा। बहुत समझाने पर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसके माता-पिता तैयार हो गए। उन्हें लगा कि शायद वो फिर उसे देख भी ना पाएं, तो वह उसे अस्पताल ले गए। वरिष्ठ नर्स ने बच्चे को अंदर जाने से मना किया परंतु अनुज मासूमियत से बोला कि उसे अपनी बहन को गाना सुनाना है। अंतत: नर्स मान गई। अनुज बच्ची के पास पहुंचा, मुस्कुराया और गाने लगा ‘तू है मेरी नन्हीं सी किरण, धूप सी आशा की सपनों की किरण’। अभी वह गाना गा ही रहा था कि बच्ची की धड़कन सामान्य होने लगी और कुछ हलचल भी होने लगी। निशा के आंसू बह निकले। नर्स ने उसे आगे गाने को कहा। ‘सोने सी, चांदी सी, उजली सी किरण। भैया की आंखों का तारा है किरण’। सभी की आंखें नम हो गई जब बच्ची की हालत में सुधार दिखने लगा। अनुज अब रोज अस्पताल आता और गाने-गाते कभी बच्ची का हाथ छूता तो कभी माथा। कुछ दिन बाद बच्ची स्वस्थ्य हो गई और उसे लाने की तैयारी होने लगी। यह एक चमत्कार था।
कई सीख:
प्यार में अविश्वसनीय ताकत होती है इसलिए प्यार का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। हम सभी की यादों में सबसे ज्यादा जगह हमारे भाई-बहन के साथ बिताए समय की होती है। परिपक्व होने के बाद ये यादें खट्टी-मीठी खुशियों की तरह गुदगुदाती हैं, हंसाती हैं और रुलाती हैं। परंतु बचपन में कई बार हमारी लड़ाई, एक दूसरे से तुलना और किसी एक का ज्यादा अच्छा प्रदर्शन इतना सुहाना नहीं लगता। उस क्षण तो यह एक संघर्ष सा लगता है। घर के भीतर ही जंग और प्रतिस्पर्धा का खिंचाव भरा माहौल रहता है। कई बार तो पारिवारिक जलसों, मुलाकातों और किटी पार्टी में महिलाओं के बीच चर्चा का विषय बच्चों के विवाद, आपसी समस्याएं और अजीबो-गरीब नुस्खे रहते हैं। इस बात पर चिंतन जरूरी है कि खून का रिश्ता जो कि सबसे ज्यादा मजबूत है उसी में भौतिक चीजों के लिए विवाद उभर आते हैं या फिर हर छोटी-बड़ी चीज के लिए तुलना और बराबरी उन्हें एक दूसरे के विपरीत खड़ा कर देती है। अगर गौर किया जाए तो भाई-बहन का वर्तमान और भविष्य में रिश्ता कैसा होगा, यह उनकी संपूर्ण परवरिश पर निर्भर करता है और माता-पिता का आपसी व्यवहार, उनका व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने का तरीका, बच्चों के बीच निष्पक्ष रवैया और समस्त प्रकार के संतुलन पर निर्धारित रहता है। जहां एक तरफ भाई-भाई संपत्ति के लिए विवाद करते हैं वहीं हमारे सामने कई उदाहरण है जहां भाई ने भाई के लिए अंगदान किया या कोई महान त्याग किया है। अभिभावक के तौर पर यह समझाना अत्यंत जरूरी है कि यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि हमारे बाद बच्चों के लिए अगर कोई जरूरी निवेश है तो वह धन सम्पत्ति नहीं बल्कि भाई-बहन या भाई-भाई का आपसी प्रेम है जिसका विकास हमारे द्वारा ही हो सकता है। हमारी छोटी-छोटी अनजानी नादानियां जैसे दोनों की बराबरी, एक जैसे व्यवहार की उम्मीद, समान और सर्वोत्तम प्रदर्शन की महत्वकांक्षा और हर दिन अनगिनत गलतियों पर तुरंत रोक लगानी पड़ेगी।
भाई प्रकृति का दिया एक सबसे प्यारा दोस्त है। -जीम बैपिस्ते
भाई-बहन दो हाथ या दो पैर की तरह हमेशा साथ रहते हैं। - वियतनामी कहावत
समस्या-कारण-समाधान
- समस्या: अक्सर बड़ा बच्चा घर में अपने छोटे भाई-बहन के जन्म के बाद गुमसुम रहता है और दोनों में अक्सर लड़ाई-झगड़े होते हैं।
- कारण : आपके पहले बच्चे को लगता है कि उसके माता-पिता अब किसी और के भी माता-पिता है, जबकि छोटा बच्चा तो पैदा होने के बाद से ही अपने अभिभावकों को बड़े बच्चे के माता-पिता के रूप में जानता है और सामान्य रहता है, जबकि बड़े बच्चे के मन में असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगती है।
- समाधान: आप छोटे के साथ-साथ बड़े बच्चे का भी ध्यान रखें। किसी एक का पक्ष लिए बगैर उन्हें समझाएं और कई बार उन्हें स्वयं सुलझाने दें।
निशा आश्वस्त थी कि अनुज अपनी बहन का बहुत प्यार से ख्याल रखेगा, क्योंकि ज्यादातर बच्चे अपने भाई-बहनों के पैदा होने के बाद ईर्ष्या करने लगते हैं। कुछ महीनों बाद निशा के दूसरे बच्चे के पैदा होने का समय नजदीक आ रहा था कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों की वजह से निशा को समय पूर्व अस्पताल में जाना पड़ा। उसने एक बच्ची को जन्म दिया परंतु बच्ची की हालत नाजुक थी और वह काफी कमजोर थी। बच्ची को सभी आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाएं दी गईं, किंतु हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। निशा और उसके पति ने अभी तक अनुज को बच्ची से नहीं मिलवाया था क्योंकि अस्पताल में छोटे बच्चों के आने की इजाजत नहीं थी। डॉक्टर ने निशा को समझाया कि बच्ची का बचना मुश्किल है और हालत सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। अब तक तो निशा भी समझ चुकी थी परंतु अनुज को यह सब किस तरह बताए ये नहीं समझ पा रही थी। अनुज मां से बच्ची को देखने जाने की जिद करने लगा। बहुत समझाने पर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसके माता-पिता तैयार हो गए। उन्हें लगा कि शायद वो फिर उसे देख भी ना पाएं, तो वह उसे अस्पताल ले गए। वरिष्ठ नर्स ने बच्चे को अंदर जाने से मना किया परंतु अनुज मासूमियत से बोला कि उसे अपनी बहन को गाना सुनाना है। अंतत: नर्स मान गई। अनुज बच्ची के पास पहुंचा, मुस्कुराया और गाने लगा ‘तू है मेरी नन्हीं सी किरण, धूप सी आशा की सपनों की किरण’। अभी वह गाना गा ही रहा था कि बच्ची की धड़कन सामान्य होने लगी और कुछ हलचल भी होने लगी। निशा के आंसू बह निकले। नर्स ने उसे आगे गाने को कहा। ‘सोने सी, चांदी सी, उजली सी किरण। भैया की आंखों का तारा है किरण’। सभी की आंखें नम हो गई जब बच्ची की हालत में सुधार दिखने लगा। अनुज अब रोज अस्पताल आता और गाने-गाते कभी बच्ची का हाथ छूता तो कभी माथा। कुछ दिन बाद बच्ची स्वस्थ्य हो गई और उसे लाने की तैयारी होने लगी। यह एक चमत्कार था।
कई सीख:
प्यार में अविश्वसनीय ताकत होती है इसलिए प्यार का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। हम सभी की यादों में सबसे ज्यादा जगह हमारे भाई-बहन के साथ बिताए समय की होती है। परिपक्व होने के बाद ये यादें खट्टी-मीठी खुशियों की तरह गुदगुदाती हैं, हंसाती हैं और रुलाती हैं। परंतु बचपन में कई बार हमारी लड़ाई, एक दूसरे से तुलना और किसी एक का ज्यादा अच्छा प्रदर्शन इतना सुहाना नहीं लगता। उस क्षण तो यह एक संघर्ष सा लगता है। घर के भीतर ही जंग और प्रतिस्पर्धा का खिंचाव भरा माहौल रहता है। कई बार तो पारिवारिक जलसों, मुलाकातों और किटी पार्टी में महिलाओं के बीच चर्चा का विषय बच्चों के विवाद, आपसी समस्याएं और अजीबो-गरीब नुस्खे रहते हैं। इस बात पर चिंतन जरूरी है कि खून का रिश्ता जो कि सबसे ज्यादा मजबूत है उसी में भौतिक चीजों के लिए विवाद उभर आते हैं या फिर हर छोटी-बड़ी चीज के लिए तुलना और बराबरी उन्हें एक दूसरे के विपरीत खड़ा कर देती है। अगर गौर किया जाए तो भाई-बहन का वर्तमान और भविष्य में रिश्ता कैसा होगा, यह उनकी संपूर्ण परवरिश पर निर्भर करता है और माता-पिता का आपसी व्यवहार, उनका व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने का तरीका, बच्चों के बीच निष्पक्ष रवैया और समस्त प्रकार के संतुलन पर निर्धारित रहता है। जहां एक तरफ भाई-भाई संपत्ति के लिए विवाद करते हैं वहीं हमारे सामने कई उदाहरण है जहां भाई ने भाई के लिए अंगदान किया या कोई महान त्याग किया है। अभिभावक के तौर पर यह समझाना अत्यंत जरूरी है कि यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि हमारे बाद बच्चों के लिए अगर कोई जरूरी निवेश है तो वह धन सम्पत्ति नहीं बल्कि भाई-बहन या भाई-भाई का आपसी प्रेम है जिसका विकास हमारे द्वारा ही हो सकता है। हमारी छोटी-छोटी अनजानी नादानियां जैसे दोनों की बराबरी, एक जैसे व्यवहार की उम्मीद, समान और सर्वोत्तम प्रदर्शन की महत्वकांक्षा और हर दिन अनगिनत गलतियों पर तुरंत रोक लगानी पड़ेगी।
भाई प्रकृति का दिया एक सबसे प्यारा दोस्त है। -जीम बैपिस्ते
भाई-बहन दो हाथ या दो पैर की तरह हमेशा साथ रहते हैं। - वियतनामी कहावत
समस्या-कारण-समाधान
- समस्या: अक्सर बड़ा बच्चा घर में अपने छोटे भाई-बहन के जन्म के बाद गुमसुम रहता है और दोनों में अक्सर लड़ाई-झगड़े होते हैं।
- कारण : आपके पहले बच्चे को लगता है कि उसके माता-पिता अब किसी और के भी माता-पिता है, जबकि छोटा बच्चा तो पैदा होने के बाद से ही अपने अभिभावकों को बड़े बच्चे के माता-पिता के रूप में जानता है और सामान्य रहता है, जबकि बड़े बच्चे के मन में असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगती है।
- समाधान: आप छोटे के साथ-साथ बड़े बच्चे का भी ध्यान रखें। किसी एक का पक्ष लिए बगैर उन्हें समझाएं और कई बार उन्हें स्वयं सुलझाने दें।
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