बचपन में जिन बच्चों को ज्यादा डराया तथा धमकाया जाता है, उनके शारीरिक
और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है और प्रौढ़ावस्था में इन
बच्चों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ब्रिटेन के मनोचिकित्सकों के अनुसार जिन बच्चों को बचपन में ज्यादा डांट-फटकार का सामना करना पड़ता है अथवा जिनके सहपाठी उन्हें पीटते हैं, तो ऐसे बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य न केवल प्रभावित होता है, बल्कि 50 वर्ष की आयु में इन्हें अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज लंदन के सायकिएट्री संस्थान के मनोचिकित्सक यू ताकीजावा की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन की रिपोर्ट अमेरिकन जर्नल ऑफ सायकिएट्री में शुक्रवार को प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संबंध में 40 वर्ष पूर्व कराए गए अध्ययन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
इस अध्ययन में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में 1958 में एक हफ्ते में जन्में 7,771 बच्चों को शामिल किया गया था। इन बच्चों के माता-पिता से पूछा गया था कि बचपन में उनके साथ घर में क्या बर्ताव होता था और कक्षा में सहपाठी उनके साथ क्या व्यवहार करते थे।
माता-पिता से यह जानकारी भी ली गई कि सात से 11 वर्ष की उम्र में क्या बच्चों को ज्यादा डांट-फटकार का सामना करना पड़ा था। अब 50 वर्ष की उम्र में पहुंच चुके इन व्यक्तियों के अध्ययन से यह पता चला है कि उनमें अवसाद, तनाव और आत्महत्या करने जैसी प्रवृति अधिक देखने को मिली। ये सामाजिक रूप से भी अलग-थलग पाए गए हैं।
सायकिएट्री संस्थान की मनोचिकित्सक लुईस आर्सेनल्ट का कहना है कि अब आप अपने दिमाग से यह धारणा निकाल दीजिए कि बच्चों को बचपन में ज्यादा डांटना या फटकारना जरूरी होता है। शिक्षकों, माता-पिता और नीति निर्माताओं को इस बात से वाकिफ होना चाहिए कि बचपन में स्कूल अथवा घर में बच्चों के साथ जो व्यवहार होता है उसके परिणाम बहुत बाद में दिखाई देते हैं।
ब्रिटेन के मनोचिकित्सकों के अनुसार जिन बच्चों को बचपन में ज्यादा डांट-फटकार का सामना करना पड़ता है अथवा जिनके सहपाठी उन्हें पीटते हैं, तो ऐसे बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य न केवल प्रभावित होता है, बल्कि 50 वर्ष की आयु में इन्हें अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज लंदन के सायकिएट्री संस्थान के मनोचिकित्सक यू ताकीजावा की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन की रिपोर्ट अमेरिकन जर्नल ऑफ सायकिएट्री में शुक्रवार को प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संबंध में 40 वर्ष पूर्व कराए गए अध्ययन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
इस अध्ययन में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में 1958 में एक हफ्ते में जन्में 7,771 बच्चों को शामिल किया गया था। इन बच्चों के माता-पिता से पूछा गया था कि बचपन में उनके साथ घर में क्या बर्ताव होता था और कक्षा में सहपाठी उनके साथ क्या व्यवहार करते थे।
माता-पिता से यह जानकारी भी ली गई कि सात से 11 वर्ष की उम्र में क्या बच्चों को ज्यादा डांट-फटकार का सामना करना पड़ा था। अब 50 वर्ष की उम्र में पहुंच चुके इन व्यक्तियों के अध्ययन से यह पता चला है कि उनमें अवसाद, तनाव और आत्महत्या करने जैसी प्रवृति अधिक देखने को मिली। ये सामाजिक रूप से भी अलग-थलग पाए गए हैं।
सायकिएट्री संस्थान की मनोचिकित्सक लुईस आर्सेनल्ट का कहना है कि अब आप अपने दिमाग से यह धारणा निकाल दीजिए कि बच्चों को बचपन में ज्यादा डांटना या फटकारना जरूरी होता है। शिक्षकों, माता-पिता और नीति निर्माताओं को इस बात से वाकिफ होना चाहिए कि बचपन में स्कूल अथवा घर में बच्चों के साथ जो व्यवहार होता है उसके परिणाम बहुत बाद में दिखाई देते हैं।
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