व्यापार में सफल होने के लिए आपको सोचना तो अंग्रेजी में होगा लेकिन काम
भारतीय ढर्रे में करना होगा। कुछ प्रमुख सफल भारतीय कंपनियों के व्यापार
करने के तरीके को लेकर किए गए अध्ययन में इसका खुलासा किया गया है।
वार्टन स्कूल ऑफ द यूनीवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के चार प्रोफेसरों द्वारा दो वर्षो तक भारत के प्रमुख कंपनियों के काम करने के तरीकों के अध्ययन के बाद पता चला कि किस प्रकार वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रही।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर केपेली, हरबीर सिंह, जितेन्द्र सिंह और माइकल उसीम ने भारतीय कंपनियों के व्यापार के तरीके का विस्तृत अध्ययन और 'द इंडियन वे: हॉव इंडियाज टॉप बिजनेस लीडर्स आर रिवोल्यूशनिंग मैनेजमेंट' नामक पुस्तक प्रकाशित किया।
पुस्तक में टाटा समूह की टाटा सन्स कंपनी के कार्यकारी निदेशक आर.गोपालकृष्णन का एक बयान प्रकाशित है, जिसमें उन्होंने कहा, ''हम अंग्रेजी में सोचते हैं और भारतीय ढर्रे में काम करते हैं।'' भारतीय प्रबंधकों के बारे में गोपालकृष्णन ने कहा कि वे भले ही सोचते अंग्रेजी में हैं लेकिन काम भारतीय ढर्रे में ही करते हैं।
गोपालकृष्णन ने विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों से कहा था, ''कई विदेशी भारत आते हैं और वे भारतीय प्रबंधकों से बातचीत करते हैं। वे पाते हैं कि भारतीय प्रबंधक स्पष्ट, बुद्धिमता पूर्वक और विश्लेषण करते हुए सोचते हैं। ''
पुस्तक में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारतीय कंपनियां किस तरह काम करती हैं। अध्ययन दल में शामिल प्रोफेसरों ने कहा कि भारतीय कंपनियों के प्रबंधकों का अपने कर्मचारियों के साथ गहरा संबंध होता है। वे कर्मचारियों का मनोबल बनाए रखते हैं। प्रबंधकों का कहना था कि वे अपने कर्मचारियों को कंपनी की संपत्ति मानते हैं।
भारतीय कंपनियां अच्छाइयों को ग्रहण करती है साथ ही नवीनीकरण पर भी बल देती हैं। अध्ययन के अनुसार भारतीय उद्योगपति बेहद रचनात्मक होते हैं और सभी की भलाई पर जोर देते हैं।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों का कहना है कि पश्चिमी देशों के कंपनी प्रबंधकों को भारतीय कंपनियों से काफी कुछ सीखना चाहिए
वार्टन स्कूल ऑफ द यूनीवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के चार प्रोफेसरों द्वारा दो वर्षो तक भारत के प्रमुख कंपनियों के काम करने के तरीकों के अध्ययन के बाद पता चला कि किस प्रकार वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रही।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर केपेली, हरबीर सिंह, जितेन्द्र सिंह और माइकल उसीम ने भारतीय कंपनियों के व्यापार के तरीके का विस्तृत अध्ययन और 'द इंडियन वे: हॉव इंडियाज टॉप बिजनेस लीडर्स आर रिवोल्यूशनिंग मैनेजमेंट' नामक पुस्तक प्रकाशित किया।
पुस्तक में टाटा समूह की टाटा सन्स कंपनी के कार्यकारी निदेशक आर.गोपालकृष्णन का एक बयान प्रकाशित है, जिसमें उन्होंने कहा, ''हम अंग्रेजी में सोचते हैं और भारतीय ढर्रे में काम करते हैं।'' भारतीय प्रबंधकों के बारे में गोपालकृष्णन ने कहा कि वे भले ही सोचते अंग्रेजी में हैं लेकिन काम भारतीय ढर्रे में ही करते हैं।
गोपालकृष्णन ने विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों से कहा था, ''कई विदेशी भारत आते हैं और वे भारतीय प्रबंधकों से बातचीत करते हैं। वे पाते हैं कि भारतीय प्रबंधक स्पष्ट, बुद्धिमता पूर्वक और विश्लेषण करते हुए सोचते हैं। ''
पुस्तक में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारतीय कंपनियां किस तरह काम करती हैं। अध्ययन दल में शामिल प्रोफेसरों ने कहा कि भारतीय कंपनियों के प्रबंधकों का अपने कर्मचारियों के साथ गहरा संबंध होता है। वे कर्मचारियों का मनोबल बनाए रखते हैं। प्रबंधकों का कहना था कि वे अपने कर्मचारियों को कंपनी की संपत्ति मानते हैं।
भारतीय कंपनियां अच्छाइयों को ग्रहण करती है साथ ही नवीनीकरण पर भी बल देती हैं। अध्ययन के अनुसार भारतीय उद्योगपति बेहद रचनात्मक होते हैं और सभी की भलाई पर जोर देते हैं।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों का कहना है कि पश्चिमी देशों के कंपनी प्रबंधकों को भारतीय कंपनियों से काफी कुछ सीखना चाहिए
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