एक युवक कठिनाइयों के दौर से गुजर रहा था। वह बहुत परेशान रहता था। एक दुख से मुक्ति मिलती तो दूसरा दुख आ टपकता। वह एक संत के पास गया और बोला - मैं चारों तरफ से दुखों से घिर गया हूं। इससे बाहर निकलने का कोई उपाय बताइए।
संत ने उसे एक गिलास पानी में दो चम्मच नमक डालकर पीने को कहा। युवक पी गया और मुंह बनाकर बोला - यह तो बहुत खारा है। अब संत उसे एक झील के पास ले गए। उन्होंने कहा- इस झील में दो चम्मच नमक डालकर इसका पानी पियो। युवक ने वह पानी पीकर कहा - यह तो पहले की तरह ही मीठा है। अब संत ने समझाया - देखो, तुम्हारे दुख नमक की तरह हैं। तुम अगर गिलास जैसे छोटे बने रहोगे, तो तुम्हें खारापन महसूस होगा। दुखों का प्रभाव तुम पर न पड़े, इसके लिए तुम्हें झील जैसा बड़ा बनना पडे़गा।
कथा-मर्म : हमारे भीतर स्वीकार करने की उदारता होनी चाहिए। दुखों को स्वीकार करने वाला ही बड़ा बनता है..
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