Wednesday, April 23, 2014

सीरत नहीं सूरत की नकल करते हैं ज्यादातर लोग

अमिताभ बच्चन का एक फिल्मी संवाद है मूंछे हो तो नत्थूलाल जैसी। कभी गौर किया है कि हर शख्स किसी न किसी की तरह दिखता है या दिखने की कोशिश करता है।
बेचारे नत्थूलाल तो मोटी मूंछों वाले किरदार थे लेकिन लोग खुद को आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में पेश करना चाहते हैं। हर जमाने में किसी न किसी व्यक्तित्व का क्रेज होता है। लोग उनकी छवि से प्रेरित होते हैं और उनका अनुसरण करते हैं। भारतीय परिपेक्ष्य में बात करें तो लोग अपने-अपने आइकन से उनके बालों की शैली, परिधान और रूपरेखा की नकल करते हैं। उनके जैसा दिखने की कोशिश करते हैं।
सत्तर के दशक में अभिनेत्री साधना को रुपहले पर्दे पर देख युवतियां उनकी तरह के बालों को रखने लगी। तब से महिलाओं में बाल रखने की इस शैली का नाम साधना कट पड़ गया। बॉलीवुड के शोमैन राजकपूर की मूछों की शैली तो आज भी देखने को मिलती है। वो पतली-पतली मूछें तो आज भी पुरुषों में प्रचलित हैं।
मनोविज्ञानी मधु प्रकाश के अनुसार एक-दूसरे को देखकर हाव-भाव बदलना आम बात है। लोग व्यवहार तक बदल डालते हैं। सिनेमा का प्रभाव आम जनों पर बहुत अधिक पड़ता है। वहीं बच्चों अपने साथियों और टीवी से काफी कुछ सीखते हैं।
टीवी और इंटरनेट ने भी समाज पर काफी प्रभाव डाला है। यह सामाजिक और आर्थिक प्रभाव डालने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ है। यह परिवर्तन का युग है। तेजी से बदलती दुनिया में उपभोक्ता समाज में लोगों के रहन-सहन के तौर तरीके भी बदले हैं। लोग मार्केटिंग के संप्रेषण से बहुत प्रभावित हो रहे हैं। हर घर अपने आप में एक अनुकृति की तरह व्यवहार कर रहा है।
समाजशास्त्री भी इस तरह की कृत्रिमता की केस स्टडी कर रहे हैं। सिनेमा, टीवी, बाजार और इंटरनेट ने लोगों की सोच को खंगाल कर रख दिया है। समाजविज्ञानियों का कहना है मीडिया में फोर सी यानी सिनेमा, क्रिकेट, अपराध और सेलिब्रिटी को जिस प्रकार से परोसा जा रहा है, उसका लोगों पर प्रभाव पड़ रहा है।
युवाओं में क्रिकेटर धोनी जैसे बाल, आमिर खान से प्रेरित होकर गजनी फिल्म जैसी हेयर स्टाइल साबित करते हैं कि लोग अपने आइकन जैसा दिखना चाहते हैं।

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