साधना
कोई दिखावा नहीं, यह तो भीतर का अभ्यास है। साधना किसी के लिए नहीं बल्कि
अपने लिए होती है लेकिन व्यक्ति साधना में भी दिखावा करता है। मन से तो
इंद्रियां विषयों की ओर जाने को ललचाती रहती हैं लेकिन ढोंगी स्वभाव उसे
ऊपर से ढक लेता है और ऐसे दिखाता है जैसे वह इन विषयों से ऊपर उठ गया है
जबकि मन में बुरे विचारों की गंदगी भरी रहती है।
इंसान सोचता है कि किसी को उसके विषय-विकारों का पता न चले और वह खुद को अच्छा जताने के लिए ऊपर से अच्छेपन को ओढ़ लेता है। इसी प्रकार अच्छा खाने-पीने और मौज-मस्ती में जिंदगी बीत जाती है। ये बुराइयां केवल जवानी में ही अपना जोर नहीं मारतीं बल्कि बुढ़ापे में भी उनका जोर बना रहता है, बस तब शरीर साथ नहीं देता। इसलिए पाखंडी बनकर न रहो, मन की गंदगी निकालो और निर्मल बन कर जियो।
जो बाहर से तो शरीर को संचालित करने वाली इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है, परन्तु मन से उन इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, वह कम बुद्धि वाला मनुष्य पाखंडी कहा जाता है।
इंसान सोचता है कि किसी को उसके विषय-विकारों का पता न चले और वह खुद को अच्छा जताने के लिए ऊपर से अच्छेपन को ओढ़ लेता है। इसी प्रकार अच्छा खाने-पीने और मौज-मस्ती में जिंदगी बीत जाती है। ये बुराइयां केवल जवानी में ही अपना जोर नहीं मारतीं बल्कि बुढ़ापे में भी उनका जोर बना रहता है, बस तब शरीर साथ नहीं देता। इसलिए पाखंडी बनकर न रहो, मन की गंदगी निकालो और निर्मल बन कर जियो।
जो बाहर से तो शरीर को संचालित करने वाली इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है, परन्तु मन से उन इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, वह कम बुद्धि वाला मनुष्य पाखंडी कहा जाता है।
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