तुम्हारे
पास क्या है और कितना है, उसका महत्व नहीं है। तुम भीतर से कितने सुखी
हो, तुम्हारे जीवन में शांति है कि नहीं, इसका महत्व है।
धनवान बनना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन यह बात अच्छी तरह से समझ लो कि पैसे से भौतिक सुख के साधन ही जुटाए जा सकते हैं, सच्ची खुशी नहीं। यदि भौतिकता में सुख होता तो महलों में रहने वाले कभी दुखी नहीं होते। यह सीधी-सी बात अगर हम समझ लें तो पैसों के लिए जो यह अंधी दौड़ चल रही है, वह शायद खत्म हो जाए।
शास्त्रों में कहा गया है कि किसी के लिए संतोष गुण है तो किसी के लिए दुर्गुण। ब्राह्मण यदि असंतुष्ट हो तो वह नष्ट होता है और राजा यदि संतुष्ट हो तो वह अपने राज्य का विकास नहीं कर सकता। राजा को संतोष नहीं होना चाहिए। वह अपने राज्य की जनता को और अच्छा शासन दे, राज्य का और तेजी से विकास हो, यह भूख उसकी सदैव बनी रहनी चाहिए।
इन्सान की हमेशा यह सोच होनी चाहिए कि उसके अंदर जो शक्ति है, बुद्धि है उसका वह सदुपयोग करे, अपने अंदर के रजोगुण को अच्छे काम में लगाए। यदि तुमने उसे अच्छे काम में नहीं लगाया तो फिर वह तुमसे गलत काम कराएगा क्योंकि रजोगुण बिना कर्म के शांत नहीं होता है।
पैसा साधन जरूर है लेकिन वह साध्य नहीं है। धर्मपूर्वक अर्थ और काम की प्राप्ति करोगे तो मोक्ष में कोई बाधा नहीं आएगी। वर्ना वही अर्थ और काम बड़ी अड़चन बन जाएंगे, बांध लेंगे और जो भी बंधा हुआ है, जो भी पराधीन है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता।
धनवान बनना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन यह बात अच्छी तरह से समझ लो कि पैसे से भौतिक सुख के साधन ही जुटाए जा सकते हैं, सच्ची खुशी नहीं। यदि भौतिकता में सुख होता तो महलों में रहने वाले कभी दुखी नहीं होते। यह सीधी-सी बात अगर हम समझ लें तो पैसों के लिए जो यह अंधी दौड़ चल रही है, वह शायद खत्म हो जाए।
शास्त्रों में कहा गया है कि किसी के लिए संतोष गुण है तो किसी के लिए दुर्गुण। ब्राह्मण यदि असंतुष्ट हो तो वह नष्ट होता है और राजा यदि संतुष्ट हो तो वह अपने राज्य का विकास नहीं कर सकता। राजा को संतोष नहीं होना चाहिए। वह अपने राज्य की जनता को और अच्छा शासन दे, राज्य का और तेजी से विकास हो, यह भूख उसकी सदैव बनी रहनी चाहिए।
इन्सान की हमेशा यह सोच होनी चाहिए कि उसके अंदर जो शक्ति है, बुद्धि है उसका वह सदुपयोग करे, अपने अंदर के रजोगुण को अच्छे काम में लगाए। यदि तुमने उसे अच्छे काम में नहीं लगाया तो फिर वह तुमसे गलत काम कराएगा क्योंकि रजोगुण बिना कर्म के शांत नहीं होता है।
पैसा साधन जरूर है लेकिन वह साध्य नहीं है। धर्मपूर्वक अर्थ और काम की प्राप्ति करोगे तो मोक्ष में कोई बाधा नहीं आएगी। वर्ना वही अर्थ और काम बड़ी अड़चन बन जाएंगे, बांध लेंगे और जो भी बंधा हुआ है, जो भी पराधीन है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता।
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