Wednesday, April 23, 2014

जारों बीज की उत्पत्ति एक बीज देकर ही संभव

गर्मियों के दिन थे। बस स्टॉप पर कुछ लोग बस के आने का इंतजार कर रहे थे। बस आते ही लोग जल्दी जल्दी बस में चढ़ने लगे। इनमें एक बुजर्ग भी थे। उतरे और चढ़ने वालों की धक्का-मुक्की में जैसे-तैसे वह बस के अंदर जा पाए और इन सबके बीच उनका एक जूता बस के बाहर गिर गया। बस चल पड़ी। बुज़ुर्ग व्यक्ति ने ज्यादा समय ना लगाते हुए अपना दूसरा जूता उतारा और तुरंत बस के बाहर फेंक दिया।
उनके पास खड़े व्यक्ति ने उनका जूता फेंकने का कारण पूछा। बुजुर्ग बोले मेरे पास एक ही जूता रह गया था जो मेरे किसी काम का नहीं है मैंने तुंरत जूता इसलिए फेंका ताकि जिस किसी को मेरा पहला जूता मिले उसकी जोड़ी पूरी हो जाए और शायद जूते उसके काम आ जाएं। मेरे लिए जहां पहला जूता वापस पाना मुमकिन नहीं इसलिए मैंने दूसरा जूता बाहर फेंक दिया। यह बोलते वक्त बुजुर्ग के चेहरे पर अफसोस नहीं बल्कि संतुष्टि भरी मुस्कान थी।
कहानी दो
मैक्सिको में हर साल कॉर्न फेस्टिवल मनाया जाता था। पिछले 3 सालों से स्टीवन को सर्वश्रेष्ठ किसान के लिए चुना जा रहा था। स्टीवन अपने आसपास के खेतों में किसानों को अपने कॉर्न के बीज बांटता था। एक दिन स्टीवन की पत्नी ने उसे रोका कि अगर वो इसी तरह अपने सर्वोत्तम बीज बांटेगा तो हो सकता है कि आने वाले ंसालों में कोई और विजेता बन जाए। स्टीवन मुस्कराया और उसने कहा मैं अपनी अच्छी फसल के स्वार्थ में ही ये करता हॅू। मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है मेरे कॉर्न की उच्च श्रेणी। मैं आसपास के किसानों को अपना बीज देता हूं ताकि कहीं से मेरे पौधों को खराब पराग के आने की गुंजाइश ना हो। ना हवा से ना किसी कीट से। मेरे कॉर्न की गुणवत्ता तभी बनी रहेगी जब पौधों को हर क्षेत्र में उत्तम चीजें मिलेगी और इसके लिए आसपास के वातावरण का हर तरह से अच्छा होना जरूरी है।



कुछ ज्ञान के तथ्य हों, जानकारी हों, गुण या भौतिक चीजें अक्सर लोग इन्हें किसी से बॉटना पंसद नहीं करते। वे सोचते हैं कि किसी से ज्ञान बांटने पर उनकी पूछ कम हो जाएगी। इसी तरह अक्सर भौतिक चीजें भी सहेज कर रखते हैं चाहे उसे रखने से उन्हें कोई फायदा न हो। भले ही वह किसी और को इसकी जरूरत हो, नहीं देते। जिस तरह बुज़ुर्ग ने अपना दूसरा जूता इसलिए फेंक दिया था कि वे किसी के काम आ जाए, हमें अपनी भौतिक चीज़ों को सिर्फ सहेजने के हिसाब से ना रख कर खुले दिल से उसे ज़रूरतमंद को देना चाहिए।
हमारे बच्चों उसी तरह बर्ताव करते हैं जैसा वे अपने आसपास और अपने अभिभावकों को करते देखते हैं। कई बार तो माता पिता स्वयं बच्चों को कोई चीज या ज्ञान दूसरें बच्चों के साथ बांटने या बताने के लिए रोकते हैं। इस तरह बच्चों बचपन से स्वार्थी होना सीखते हैं। जहां तक नैतिक मूल्यों का या सद्गुण का सवाल है, इन्हें  निस्वार्थ न सिर्फ दूसरे को बताना चाहिए बल्कि स्वयं के आचार में लाकर एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। अच्छे गुण बांटने से कम नहीं होते अलबत्ता आसपास स्वस्थ्य वातावरण बना रहता है। अगर हम अपने बच्चों को अच्छी चीजें बांटने देंगे तो इसका फायदा उन्हें ही मिलेगा जिस तरह स्टीवन बीज इसलिए बांटता था ताकि उसकी फसल की गुणवत्ता पर खराब असर ना हो।


उदाहरण1

शीना का गणित अच्छा था और अक्सर सहपाठी उससे अपनी समस्या और सवाल पूछते थे। शीना की मां उसे समस्या हल करने के लिए प्रोत्साहित करती थी क्योंकि इससे ना सिर्फ शीना का गणित और मजबूत हो रहा था बल्कि उसमें आत्मविश्वास बढ़ रहा था। वह कक्षा में सबकी चहेती बन रही थी।
उदाहरण2

रोनित स्कूल में महंगा पेन और बाकी सामान लेकर जाता था। उसके माता पिता उसे किसी से कोई चीज़ साझा करने के लिए मना करते थे। वह स्वार्थी बन रहा था। परीक्षा में वह कम्पास बॉक्स भूल गया, जब दोस्तों से पेन मांगना पड़ा तब वह शर्मिदा हुआ, क्योंकि उसने कभी किसी की मदद नहीं की थी।

समस्या-समाधान

आपके बच्चों आपके कहने पर भी अपनी चीजें किसी से, यहां तक की भाई बहन से भी बांटने के लिए तैयार नहीं होते।
समाधान : उन्हें समझाएं कि किसी भी चीज का आनंद या महत्व अकेले इस्तेमाल करने में नहीं। संतुष्टि दूसरों के साथ चीजें साझा करने से ही आती है। उन्हें प्रकृति के उदाहरण दें।


मनुष्य सामाजिक प्राणी है और उसका अस्तित्व अकेले संभव नहीं क्योंकि हमारे विभिन्न क्षेत्र में दूसरों पर निर्भरता है। अगर हमारे बच्चों स्वार्थी होंगे तो इसका असर उनके आने वाले जीवन पर रहेगा।
कोट
हमें जो मिला है उससे जीवन बनता है, हम जो देते हैं उससे हम जिंदगी बनाते हैं।                  —विंस्टन चर्चिल
कोई भी इंसान इसलिए सम्मानित नहीं किया जाता कि उसे क्या मिला। उसे सम्मान मिलता है कि उसने क्या दिया।         
                      —कैल्विन कूलिज

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